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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org श्रुतसागर - ३१ २३ की परम आवश्यकता दिखलाता है। मनोनाश-वासना - नाश तथा तत्व- ज्ञान के युगपद अभ्यास के बिना परमपद की अप्राप्ति के श्रुति-निर्देश द्वारा यह सिद्ध किया है कि सविकल्पक समाधि का अनुष्ठान नितान्त अनिवार्य है। यह सभी योगावस्था का उत्तरार्ध और परादृष्टि का पूर्वार्ध तेरहवें गुणस्थान जैसी समकक्षता रखता है किन्तु इस अंतिम योगावस्था में चित्त सम्पूर्ण शान्त व पूर्ण नैतिक साधन की सिद्धि को प्राप्त होता है अर्थात् निर्वाण की प्राप्ति करता है। यह चौदवें गुणस्थान से तुलनीय है । समाधिफल - योग दर्शन में समाधिफल का उप विभाजन एवं विश्लेषण इस प्रकार किया गया है (अ) सम्प्रज्ञात समाधिफल सविकल्पक समाधि में सात्विक वृत्ति का ध्येय के आकार के रूप में सद्भाव रहता है। समाधि में ध्यान - ध्याता ध्येय त्रिपुटी का विलय नहीं होता। इस सविकल्पक समाधि के चिरकालिक अनुष्ठान को सम्प्रज्ञात योग कहा है। दौलतराम कृत छहढाला में ध्यान - ध्याता ध्येय त्रिपुटी की अवस्था को इस प्रकार स्पष्ट किया गया है- Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir · जहाँ ध्यान ध्याता ध्येय को न विकल्प वच भेदन जहाँ । चिद् भाव कर्म चिदेश कर्ता चेतना किया तहाँ ||६|| समाधि अनुष्ठान द्वारा अप्रत्यक्ष अर्थ का साक्षात्कार, क्लेश-नाश शुभाशुभ कर्म विनाश तथा निरुद्ध चित्त में सात्विक वृत्ति का निरोध करते हुए असम्प्रज्ञात समाधि की उपलब्धि होती है। जैन दर्शन में मोक्ष के लिए शुभाशुभ वृत्तियों का निरोध जरूरी माना गया है। - (ब) असम्प्रज्ञात समाधि - सविकल्प समाधि की पराकाष्ठा धर्ममेघ समाधि है । पूर्णरूपेण वृत्ति-शून्य चित्त में जब सच्चिदानन्द स्वरूप का स्फुरण होता है तभी असम्प्रज्ञातत-समाधि होती है। (स) निर्बीज समाधि श्रवण, मनन एवं ध्यान के अभ्यास द्वारा धर्ममेघ समाधि की प्राप्ति होती है। परम विरक्ति प्रधान प्रज्ञा के प्रसाद से अनुगृहीत आत्मा परमात्मा का साक्षात्कार करती है और इस प्रकार निर्बीज योग प्राप्त होता है । यद्यपि द्विविध समाधियाँ जीवन मुक्ति के लिए अपेक्षित कही जाती हैं तथापि निर्विकल्पक समाधि तो जीवन्मुक्ति की ही होती है। For Private and Personal Use Only (क्रमश:)
SR No.525281
Book TitleShrutsagar Ank 2013 08 031
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMukeshbhai N Shah and Others
PublisherAcharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
Publication Year2013
Total Pages36
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size3 MB
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