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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २२ अगस्त • २०१३ (३) बलादृष्टि और आसन • व्यक्ति यहाँ मनोविकारों व तृष्णा को शान्त करने की शक्ति संचय करके योग निरोध का अभ्यास मन, वचन, काया के माध्यम से करता है। इस अवस्था का तत्त्वबोध काष्ठ की अग्नि के समान होता (४) दीप्रादृष्टि और प्राणायाम - यह योग के प्राणायाम के समान है जैसे प्राणायाम की रेचक, पूरक, और कुम्भक तीन अवस्थाएँ हैं ठीक उसी प्रकार दीप्रादृष्टि क्रमशः बाह्य भाव नियन्त्रण, आन्तरिक भाव नियन्त्रण तथा मनोभावों की स्थिरतारूप कुम्भक जिसमें सदाचार की ज्योति प्रज्ज्वलित रहती है, के समान होती है किन्तु पूर्ण नैतिक विकास के अभाव में इस अवस्था में पतन की सम्भावना बनी रहती है। इन चारों अवस्थाओं में आसक्ति रहती है, यथार्थ बोध नहीं होता! (५) मिथ्यादृष्टि और प्रत्याहार • इस अवस्था में व्यक्ति सत्य या यथार्थ को स्वीकारता व समझता तो है किन्तु ग्रहण नहीं कर पाता। यद्यपि दिशा व लक्ष्य उसके सामने तय होते हैं किन्तु आचरण का निमित्त या संयोग नहीं मिल पाता ठीक सम्यग्दृष्टि चतुर्थ गुणस्थान की तरह। (६) कान्तादृष्टि और धारणा - जिस प्रकार चित्त की स्थिरता में शुद्धता आधार रूप है उसी प्रकार कान्तादृष्टि के द्वारा जीव सत्-असत् में पूरण भेद दृष्टि के साथ आत्मशुद्धि के पथ पर साधना में स्थिर होता है। इस धारणा के समर्थन में छः ढाला की छठ्ठी ढाल की ये पंक्तियाँ युक्ति संगत प्रतीत होती हैं जिन परम पैनी सुबुधि छैनी डारि अंतर भेदिया। वरणादि अरु रागादि तें निज भाव को न्यारा किया Ill (७) प्रभादृष्टि और ध्यान - जहाँ धारणा में एक देशीय चित्त की स्थिरता रहती है वहीं प्रभादृष्टि और ध्यान अवस्था दीर्घकालिक व चित्त की पूर्ण स्थिरता की द्योतक है। कमोवेश यह स्थिति जैन दर्शन में आठवें से बारहवें गुणस्थान में देखने को मिलती है। यहाँ कर्म क्षय (क्षीण प्राय) हो जाता है। पं. दौलतरामजी अपने बहु प्रचलित लोकग्रंथ छः ढाला में कहते हैं - निज माहि निज के हेतु निजकर आपको आपै गह्यां। गुण गुणी ज्ञाता ज्ञान ज्ञेय मझार कछु भेद न रह्यौ।। (८) परादृष्टि और समाधि - अद्वैत मार्तण्ड ज्ञानोदय में समाधि के अनुष्ठान For Private and Personal Use Only
SR No.525281
Book TitleShrutsagar Ank 2013 08 031
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMukeshbhai N Shah and Others
PublisherAcharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
Publication Year2013
Total Pages36
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size3 MB
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