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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir फरवरी २०१३ दानवीर धर्मपरायण सेठश्री थीरूशाह ने लोद्रवपुर के प्राचीन देरासर का पुनः जीर्णोद्धार कराने का बीड़ा उठाया। निर्माणकार्य आरम्भ कराकर श्रेष्ठीश्री ने संघ सहित शत्रुजयजी की यात्रा प्रारम्भ की और जब यात्रा पूर्ण करके वापस लौटे तब तक जीर्णोद्धार कार्य भी पूरा हो गया । अन्ततः लोद्रवा में नूतन भव्य मनोहर जिन प्रासाद बनकर तैयार हो गया। थीरुशाह ने अब इस जिनालय में विराजमान करने हेतु एक मनोरम्य अलौकिक प्रतिमाजी की खोज प्रारम्भ की | उसी समय गुजरात के पाटण निवासी दो शिल्पियों ने सहस्रफणा पार्श्वनाथ भगवान की दो अलौकिक और अति सुन्दर प्रतिमाओं का निर्माण किया। ये प्रतिमाजी कसोटी पाषाण से निर्मित की गईं। दोनों शिल्पियों ने विचार किया कि यदि इन प्रतिमाओं का पंजाब के मुल्तान में योग्य मूल्य प्राप्त हो सकता है। और एक दिन दोनों शिल्पी प्रतिमाओं को एक रथ में रखकर मुल्तान की ओर चल दिये। देवयोग से रात्रि-विश्राम हेतु दोनों शिल्पी राजस्थान के लोदरवा नामक इस गाँव में रुके। रात में उन्हें अधिष्ठायक देव ने स्वप्न में कहा कि इन प्रतिमाओं को यहीं के श्रेष्ठीश्री थीरूशाह को दे दें; उन्हें योग्य धन मिलेगा। थीरूशाह को भी स्वप्न में यह संकेत दिया गया कि वह इन प्रतिमाओं को शिल्पियों से ले कर नवनिर्मित प्रासाद में प्रतिष्ठित कराये। प्रातःकाल दोनों एक-दूसरे को खोजने निकले। दोनों की मुलाकात हुई और थीरूशाह ने प्रतिमाओं के वजन के बराबर स्वर्णमुद्राएँ दे कर प्रतिमाजी ले लीं। शिल्पी भी खुश हो गये। जिस रथ में शिल्पी इन प्रतिमाओं को लाये थे वह रथ आज भी लोदरवा तीर्थ में विद्यमान है। इस भव्य मनोहर तीर्थ में इन विशिष्ट कलात्मक प्रतिमाओं की प्रतिष्ठा वि.सं.१६७५ मागसर सुद द्वादशी के दिन खरतरगच्छीय समर्थ आचार्य श्री जिनसिंहसूरीश्वरजी म.सा. के पटधर श्री जिनराजसूरीश्वरजी म.सा. के करकमलो द्वारा हुई! यहाँ एक विशाल परकोटे के अन्दर स्थित पाँच देरासर पाँच अनुत्तर विमानों की आकृति का स्मरण कराते हैं। ये सभी देरासर सेठ श्री थीरूशाह द्वारा बनवाये हुए हैं। इनमें मध्यरथ श्री सहस्रफणा पार्श्वनाथ भगगन का विशाल देरासर मुख्य है जिसमें मूलनायक भगवान की प्रतिमाजी श्यामवर्णी हैं। इन प्रतिमाजी पर निम्नोक्त प्रशस्ति लिखी हुई है : ___||श्रीलोद्रवनगरे श्रीवृहत् खरतरगच्छाधीशैः सं. १६७५ मार्गशीर्ष सुदि १२ गुरौ भांडशालिकश्रीमल्लभार्या चांपलदेपुत्ररत्नथाहरुकेन भार्या कनकादेपुत्र हरराज For Private and Personal Use Only
SR No.525275
Book TitleShrutsagar Ank 2013 02 025
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMukeshbhai N Shah and Others
PublisherAcharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
Publication Year2013
Total Pages36
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size2 MB
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