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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १६ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अक्तुबर २०१२ गुरुवन्दना का कार्यक्रम पूर्ण धार्मिक वातावरण में सम्पन परम पूज्य राष्ट्रसन्त आचार्यदेव श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी महाराज साहब के ७८वें जन्मवर्धापन पंचानिका महोत्सव के चौथे दिन दिनांक २९ सितम्बर २०१२ शनिवार को श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र, कोबा में गुरुवन्दना का कार्यक्रम पूर्ण धार्मिक वातावरण में सम्पन्न हुआ। इस अवसर पर संगीतकार श्री हार्दिकभाई ने गुरुभक्ति युक्त गीतों से उपस्थित श्रद्धालुओं को गुरुभक्ति की गंगा में डुबकियाँ लगवाई। गुरुवन्दना के मंगलमय अवसर पर शेठ श्री दिनेशभाई रांका परिवार के सदस्यों का बहुमान श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र, कोबा की ओर से ट्रस्टी श्री मुकेशभाई शाह, श्री श्रीपालभाई शाह, श्री किरीटभाई कोबावाला, आदि ने किया। भगवान महावीर की निर्वाणभूमि पावापुरी तीर्थक्षेत्र के अध्यक्ष श्री तेजबहादूर सिंह बैद इस अवसर पर उपस्थित थे, उनका भी बहुमान कोबातीर्थ ट्रस्ट द्वारा किया गया। पूज्यश्री ने अपने मंगल प्रवचन में कहा कि हमें भगवान महावीर का शासन मिला है। भगवान महावीर के शासन में जन्मोत्सव मनाने की परम्परा नहीं है, यहाँ तो मृत्यु को महोत्सव बनाने की बात है। परम कृपालु परमात्मा ने स्वयं के जीवन से यह शिक्षा दी है कि हम ऐसा कार्य करें कि इस जन्म - मृत्यु से ही छुटकारा मिल जाए। पूज्यश्री ने कहा कि मैं तो यह चाहता हूँ कि मेरा अगला जन्मोत्सव मनाने की आवश्यकता ही न हो । संयम और साधना के बल पर हम अपने मृत्यु को महोत्सव बना सकते हैं। जैनधर्म में वैज्ञानिक ढंग से जीवन जीने की कला बताई गई है। सामायिक प्रतिक्रमण आदि पूर्व वैज्ञानिक पद्धति हैं । पूज्य आचार्यदेव ने आगे कहा कि मानव जीवन सभी योनियों में श्रेष्ठ जीवन है. बड़े पुण्य से यह जीवन प्राप्त होता है। किसी पूर्व भव के पुण्य का लाभ मिला है तो हम अपना वर्तमान ऐसा बनाएँ जिससे हमारा भविष्य उज्ज्वल हो सके। यदि हम अपने भूतकाल की उपलब्धियों के विषय में सोचते रहेंगे तो हमारा भविष्य सुधर नहीं सकता है और यदि हम अपना भविष्य सुधारने के सपने देखते रहें तो भी भविष्य सुधर ही जाएगा ऐसा तय नहीं है क्योंकि भविष्य हमारे हाथ में नहीं है। यदि भविष्य को अपने मनोनुकूल बनाना हो तो वर्तमान को सुधारना पड़ेगा। जिसका वर्तमान अच्छा होगा उसीका भविष्य भी अच्छा होगा। वर्तमान को अच्छा बनाने के लिये साहस, शक्ति, धैर्य एवं समर्पण की आवश्यकता है। जिसने भी परमात्मा के समक्ष अपने आपको समर्पित कर दिया उसका भविष्य सुधर गया। समर्पण करने के लिये श्रद्धा का होना अति आवश्यक है। श्रद्धा के बिना हम किसी के प्रति समर्पित नहीं हो सकते हैं। पूज्य राष्ट्रसन्त ने जन्म जरा मृत्यु के भव को दूर करने का उपाय बताते हुए कहा कि यह संसार भौतिक सुखों का मायाजाल है । सांसारिक सुख में दिन-रात लिप्त होकर जीव अपना भविष्य नष्ट कर रहा है। आत्मा को भौतिक सुख नहीं आध्यात्मिक सुख की आवश्यकता होती है। आध्यात्मिक सुख हम तभी प्राप्त कर सकते हैं जब हमारी श्रद्धा परमात्मा की वाणी में होगी परमात्मा महावीर की वाणी का अनुसरण जिसने भी किया है उनका उद्धार अवश्य ही हुआ है श्रमण महावीर की परम्परा में त्याग का महत्त्व बहुत अधिक है, यदि सांसारिक सुख का भोग करते हुए मोक्ष मिलने की बात होती तो भगवान महावीर संसार का त्याग नहीं करते वे तो राजकुमार थे जो चाहते वह सब उन्हें प्राप्त हो सकता था किन्तु उन्होंने जाना कि यह संसार भवभ्रमण का कारण है। जन्म जरा और मृत्यु को देने वाला है और मुझे ऐसा जीवन जीना है कि दुबारा जन्म ही लेना नहीं पड़े। उन्होंने अपना जन्म रोक दिया अब हमें भी प्रयास करना चाहिए कि हमारा भी जन्म रुक जाए। आप सभी परमात्मा के बताए मार्ग पर चलकर अपने मृत्यु को महोत्सव बनाएँ, यही हमारी शुभकामना और मंगल आशीर्वाद है। For Private and Personal Use Only
SR No.525271
Book TitleShrutsagar Ank 2012 10 021
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMukeshbhai N Shah and Others
PublisherAcharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
Publication Year2012
Total Pages20
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size3 MB
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