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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वि.सं.२०६८-श्रावण इच्छा है, क्योंकि मैं ख्याल करता हूँ कि व्यावहारिक योगाभ्यास के लिए यह साहित्य सबसे प्राचीन है, यह वेद की रीति रिवाजो से पृथक है, इसमें हिन्दुधर्म से पूर्व की आत्मिक स्वतन्त्रता विद्यमान है, परमपुरुषों ने जिसका अनुभव कर प्रकाशित किया है, यह समय है कि हम इसके विषय में अधिक जानें. ___टी.पी. कप्पुस्वामी शास्त्री, तंजोर ने अपने लेख में लिखा है कि- 'तीर्थंकर, जिन से जैनों के विख्यात सिद्धान्तों का प्रचार हुआ है, वह आर्य क्षत्रिय थे. जैन अवैदिक भारतीय आर्यों का एक विभाग है. श्री राममिश्र शास्त्री ने एक व्याख्यान में कहा है कि- जैनमत सृष्टि की आदि से बराबर अविच्छिन्न चला आया है. आजकल अनेक अल्पज्ञजन बौद्धमत और जैनमत को एक मानते हैं, यह महाभ्रम है. बड़े-बड़े नामी आचार्यों ने अपने ग्रन्थों में जो जैनमत का खण्डन किया है, वह ऐसा किया है कि देखकर हँसी आती है. एक दिन वह था कि जैन संप्रदाय के आचार्यों के हुँकार से दशों दिशाएँ गूंज उठती थीं. भरी सभा में मुझे यह कहने में किसी प्रकार की अतिशयोक्ति प्रतीत नहीं होती कि जैनों का ग्रन्थसमुदाय सारस्वत महासागर है, उसकी ग्रन्थसंख्या इतनी विशाल है कि उन ग्रन्थों का सूचीपत्र भी एक महानिबन्ध हो जाएगा. उस पुस्तक समुदाय का लेख और लेख्य कितना गंभीर, युक्तिपूर्ण, भावपुरित, विशद और अगाध है कि जिन्होंने सारस्वत समुद्र में अपने मतिमथान को डाल कर चिरान्दोलन किया है, वही जानते हैं. लोकमान्य बालगंगाधर तिलक ने जैनधर्म के प्रति अपने उद्गार व्यक्त करते हुए कहा है कि- पूर्वकाल में यज्ञ के लिए असंख्य पशुहिंसा होती थी, इसके प्रमाण मेघदूत आदि अनेक ग्रन्थों में मिलते हैं. रंतिदेव नामक राजा ने यज्ञ में इतना प्रचुर वध किया था कि नदी का जल खून से रक्तवर्ण हो गया था, उस नदी का नाम चर्मवती प्रसिद्ध है. ब्राह्मण और हिन्दुधर्म में मांसभक्षण और मदिरापान बन्द हो गया, यह भी जैनधर्म का प्रताप है, महावीर स्वामी का अहिंसा धर्म ही ब्राह्मणधर्म में मान्य हो गया. जैनशास्त्रों में वर्णित ज्ञान-विज्ञान से प्रभावित होकर इटालियन विद्वान डॉ. टैसीटोरी ने कहा है- 'आधुनिक विज्ञान ज्यों-ज्यों आगे बढ़ता जाता है त्यों-त्यों जैन सिद्धान्तों को ही साबित करता जाता है. यूरोपियन विद्वान डॉ. परटोल्ड ने लिखा है कि- स्याद्वाद की वर्तमान पद्धति का स्वरूप देखना ही पर्याप्त है. धर्म के विचारों में जैनधर्म निश्चितरूप से असीम है. जर्मनी के डॉ. जोहनस हर्टल ने कहा- 'मैं अपने देशवासियों को दिखाऊँगा कि कैसे उत्तम नियम और ऊँचे विचार जैनधर्म और जैनाचार्यों में हैं, जैनों का साहित्य बौद्धों से बढ़कर है और ज्यों-ज्यों मैं जैनधर्म और उसके साहित्य को समझता हूँ, त्यों-त्यों मैं उन्हें अधिक पसन्द करता हूँ.' पेरिस के डॉ. ए. गिरनाट ने लिखा है कि 'मनुष्यों की तरक्की के लिए जैनधर्म का चरित्र बहुत लाभकारी है, यह धर्म असली, सादा, मूल्यवान तथा ब्राह्मणों के मत से भिन्न है, तथा बौद्धों के समान नास्तिक नहीं है.' मि. आये जे. ए. डवाई ने सन् १८१७ ई. में प्रकाशित अपनी पुस्तक में लिखा है कि- 'जैनधर्म बहुत प्राचीन धर्म है. इसके प्रथम तीर्थंकर आदीश्वर भगवान ने प्रथमानुयोग, चरणानुयोग, करणानुयोग और द्रव्यानुयोग इन चार वेदों की रचना जैनधर्मावलम्बियों के लिए की है. आदीश्वर भगवान जैनों के सबसे प्राचीन एवं प्रसिद्ध पुरुष हैं.' ___डॉ. ओ. परटोल्डाना ने अपने एक व्याख्यान में कहा है कि- धर्मों के साथ विज्ञान की तुलना में जैनधर्म को कौन सा स्थान दिया जा सकता है तथा विज्ञान में उसका कितना महत्व है; यही बतलाने का मेरा प्रयत्न है. __ डॉ. हर्मन जैकोबी, प्रो. मेक्समूल्लर, प्रो. ल्युमन, प्रो. होर्नल, होफ्रेट बुल्डर, डॉ. फुहरर, एम.ए. बार्थ, मि. लेवीस राइस, प्रो. टीले, प्रो. मॉटेट, डॉ. एल.पी.टेसीटोरी, डॉ. हर्टल, मि. हर्वर्टर वारेन आदि अनेक पाश्चात्य विद्वानों ने जैनागमों, शिलालेखों आदि का भाषान्तर कर उन्हें प्रकाश में लाने का महत्वपूर्ण कार्य किया है. For Private and Personal Use Only
SR No.525269
Book TitleShrutsagar Ank 2012 08 019
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMukeshbhai N Shah and Others
PublisherAcharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
Publication Year2012
Total Pages20
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size2 MB
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