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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अंतर्जगत की यात्रा प्रवचन सारांश परम पूज्य राष्ट्रसंत आचार्य श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी महाराज साहब ने चातुर्मास अवधि में आयोजित रविवारीय प्रवचन श्रेणी की प्रथम शृंखला में अन्तर्जगत की यात्रा विषय पर परमात्मा महावीर की वाणी का उल्लेख करते हुए कहा कि अनन्त उपकारी, अनन्त ज्ञानी परमात्मा महावीर प्रभु के शासन में जन्म लेना पूर्व जन्म के पुण्य के बिना सम्भव नहीं है. अन्तर्जगत की बात करते हुए कहा कि आज तक हमने इस जगत की यात्रा तो बहुत की है, बाहर बहुत भटका है और जीवन का अनन्तकाल व्यतीत किया है किन्तु अभी तक पूर्ण विराम की प्राप्ति नहीं हुई है. परम कृपालु परमात्मा से हम रोज प्रार्थना करते हैं कि अब इस संसार में परिभ्रमण नहीं करना है, किन्तु क्या हम सही अर्थ में ऐसा कर पाते हैं? बार-बार जन्म लेना, बार-बार मृत्यु पाना और सम्पूर्ण जीवन दुःखमय व्यतीत करना, यह कब तक? कहाँ-कहाँ भटकते हुए यहाँ आये हैं, कितनी यातनाएँ सहन की है, क्या इससे बचने का विचार आपके मन में सही अर्थों में आता है? अब दुःख सहन नहीं करनी है, यह कभी सोचा है? केवल प्रार्थना बोलने से नहीं होगा, इसके लिये अपने जीवन का लक्ष्य तय करना होगा. क्या करना है? कहाँ जाना है? यह तय करना होगा. अभी तो आपको पता भी नहीं होगा कि यहाँ से आगे कहाँ जाओगे? यदि इस चक्र से बचना चाहते हो तो जीवन का लक्ष्य तय करो. कहाँ जाना है यह तय करो. संसार की यात्राएँ बहुत की है. अब एक बार अन्तर की यात्रा करो. अन्तर की यात्रा के वैभव के सामने संसार का वैभव तुच्छ है, बेकार है, महत्त्वहीन है. दुनिया के वैभव की कोई कीमत नहीं है. यह उधार का सौदा है. उधार लेकर हम अपना जीवन यापन कब तक कर सकते हैं? जिस दिन दुकानदार उधार देना बन्द कर देगा उस दिन बहुत यातनाएँ सहन करनी होंगी, बहुत दुःख होगा, जीवन के समक्ष अंधकार नजर आयेगा. इसलिये उधार लेने की प्रवृत्ति का त्याग करें, सुखी हो जाएंगे. अपना विचार बदल डालो, विचारों को सही दिशा में लगाओ, जीवन का लक्ष्य तय करो. परमात्मा ने कहा है, आत्मा ही परमात्मा है, इस बात को भगवान महावीरस्वामी ने स्वयं अपने जीवन से सिद्ध कर दिखाया है. हमें दूसरा कोई और उदाहरण ढूँढ़ने की आवश्यकता नहीं है. आत्मा अनादिकाल से कर्मों से लिप्त है. आत्मा पर लगे हुए कर्मों को काटकर दूर करना है, निर्मलता की प्राप्ति करनी है. अन्तर्जगत की यात्रा पर जाने के लिये सामायिक, स्वाध्याय, स्मरण का साथ लेना होगा, इसके सहारे चिंतन शक्ति प्राप्त करनी होगी. सामायिक बहुत बड़ा विज्ञान है. आत्मा के वास्तविक स्वरूप को प्राप्त करने का बहुत बड़ा साधन है. आध्यात्मिक क्षेत्र में प्रवेश करने का मार्ग है.यम नियम द्वारा जीवन को अनुशासित कर अन्तर्जगत की यात्रा पर निकलें.. आज समाज में आहार की विकृति हो रही है. होटल में खाना खाने में शान और ऐश्वर्य समझते हैं. उन्हें पता नहीं है कि वहाँ सात्विक आहार नहीं बल्कि अनन्तजीव वाले खाद्य पदार्थ मिलते हैं. इसका त्याग करना होगा, सात्विक आहार को अपनाना होगा. तभी हम सच्चे अर्थ में अन्तर्जगत की यात्रा कर सकते हैं. आप एक बार भी यदि अन्तर्जगत की यात्रा कर लिये तो फिर जो आनन्द, सुख की अनुभूति होगी वह अवर्णनीय है और तब आपका मन संसार की यात्रा में नहीं बल्कि इसी यात्रा में जाना पसंद करेगा. एक बार की अन्तर्जगत की यात्रा में अनन्त कर्मों से छुटकारा मिल जाता है, यह परमात्मा की वाणी है.तो फिर हम संसार की यात्रा में क्यों भटकें? क्यों नहीं अन्तर्जगत की यात्रा पर निकल चलें? (रविवारीय शिक्षाप्रद मधुर प्रवचन शृंखला ता. 1-7-2012, प्रथम शिविर, कोबा) BOOK POST प्रसतुतकर्ता : डॉ. हेमन्त कुमार अंक प्रकाशन सौजन्य : श्री रश्मिकांतभाई कामदार परिवार Rushab Ship Consultant, Inc., 43, Jonanthan Drive, Edison, NJ 08820, USA. For Private and Personal Use Only
SR No.525268
Book TitleShrutsagar Ank 2012 07 018
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMukeshbhai N Shah and Others
PublisherAcharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
Publication Year2012
Total Pages20
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size2 MB
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