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वि.सं.२०६८-आषाढ़ छाँव युक्त सम्मिश्रित वातावरण में श्रद्धालु जय-जयकार के नारों के साथ पूज्यश्री के पीछे चल रहे थे. शोभायात्रा के मार्ग में दोनों ओर पूज्यश्री के दर्शनार्थ बाल-वृद्ध, नर-नारी कतारबद्ध होकर खड़े थे एवं जैसे ही उन्हें पूज्यश्री का दर्शन होता उनके चेहरे पर आनन्द की लहर दौड़ जाती. वहाँ से फिर वे शोभायात्रा में सम्मिलित हो जाते. श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र तक आते-आते शोभायात्रा अन्तहीन लम्बाई में बदल गई. देखने वालों और साथ में चलने वालों को पता ही नहीं चल पाता था कि हम बीच में हैं, आगे हैं या पीछे हैं. कोई रथ पर सवार था तो कोई ऊँट की सवारी कर रहा था, कोई पैदल चल रहा था तो कोई घोड़े पर करतब दिखा रहा था. बैन्ड पर गुरुवंदना के बोल गूंज रहे थे तो साथ में चलने वाले गुरुभगवंतों की जय-जयकार कर रहे थे. हर कोई श्रद्धानवत् होकर शोभायात्रा में अपनी सहभागिता प्रदर्शित कर रहा था. संपूर्ण वातावरण जिनशासन के गौरव की जयजयकार से गुंजायमान हो ऊठा था. हर कोई पूज्यश्री के दर्शन-वंदन को आतुर हो रहा था.
पूज्यश्री के प्रभावक मुखमंडल से अलौकिक आभा प्रसरित हो रही थी, दर्शनार्थी को लगता था कि पूज्यश्री मन ही मन मेरा हाल-चाल पूछ रहे हैं और वह भी प्रफुल्लित होकर मन ही मन अपना हाल कहता हुआ चला जाता है. सभी अपने-अपने कार्यों का सतर्कता पूर्वक संपादन कर रहे थे.
पूज्यश्री के चातुर्मास प्रवेशोत्सव पर कोबा हाईस्कूल में उपस्थित श्रद्धालुओं के लिये श्री किरीटभाई कोबावाला परिवार की ओर से नौकारशी की सुंदर व्यवस्था की गई थी. चातुर्मास प्रवेश प्रसंग पर पूज्य राष्ट्रसंत आचार्य भगवंत का
मंगल उद्बोधन 'जीवन को ज्योति बनाएँ, ज्वाला नहीं' श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र, कोबा में दिनांक २१/०६/१२ को चातुर्मास प्रवेशोत्सव के मंगलमय अवसर पर परम पूज्य राष्ट्रसंत आचार्य श्री पदमसागरसूरीश्वरजी महाराज साहब ने अपने मंगल प्रवचन में उपस्थित विशाल जन समुदाय को प्रबोधित करते हुए कहा कि हमने मानव तन पाया है, तो हमें जीवन जीने की कला भी सीखनी चाहिए. धर्म में दर्शन का भाव होना चाहिए, प्रदर्शन का नहीं. धर्म के बिना जीवन का कोई महत्त्व नहीं है. धर्म के वास्तिवक स्वरूप को समझें. धर्म के मार्ग को सरल न समझें. धर्म के बिना पुण्य प्राप्त नहीं हो सकता है. अहंकार को छोड़े बिना धार्मिक भाव नहीं हो सकता है. मैत्री का भाव शब्दों में नहीं आचरण में होना चाहिए. शब्दों के साथ आचरण में सत्य को अपनाएँ. सत्य जीवन का चौकीदार है. अपने जीवन में सत्य को चौकीदार बनाकर रखेंगे तो पाप आपके पास नहीं फटकेगा. अहिंसा मोक्ष का द्वार है. अहिंसा हमें मानवता, करुणा, प्रेम भाईचारा का संदेश देता है. हमें अपने जीवन में सत्य और अहिंसा का पालन अवश्य ही करना चाहिए. __ज्योतिर्विद् आचार्य श्री अरुणोदयसागरसूरीश्वरजी महाराज साहब ने अपने प्रवचन में मानव जीवन की सार्थकता बताते हुए कहा कि बहुत पुण्योपार्जन के पश्चात् हमें मानव जीवन मिला है, इस जीवन को हम धन्य बना लें.
इस मंगलमय अवसर पर शेठ श्री जयन्तिलाल केशवलाल शाह परिवार, हस्ते श्री कल्पेशभाई शाह साबरमती, अहमदाबाद ने गुरुपूजन का लाभ लिया तथा श्री मांगीलालजी प्रतापजी शाह परिवार भायंदर मुंबई ने गुरुभगवंतों को कांबली ओढ़ाने का लाभ लिया. इन दोनों लाभार्थियों को श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र, कोबा ट्रस्ट की ओर से सम्मानित किया गया. शोभायात्रा के लाभार्थी परिवार श्री सोहनलालजी चौधरी, अहमदाबाद व श्री नवीनचंद्र ज. शाह, शांताक्रूज, मुंबई, नौकारशी के लाभार्थी श्री किरीटभाई कोबावाला परिवार को श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र, कोबा की ओर से सम्मानित किया गया.
कार्यक्रम के प्रारम्भ में गुरुवंदन का कार्यक्रम हुआ, कोबातीर्थ के ट्रस्टी श्री श्रीपालभाई आर. शाह ने उपस्थित श्रद्धालुओं का स्वागत करते हुए कहा कि पूज्य आचार्यभगवंत का चातुर्मास हम सब के लिए परम सौभाग्य एवं गौरव की बात है.
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