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जुलाई २०१२
इस प्रकार के चिह्न कई हस्तप्रतों में अलग-अलग स्याहियों के द्वारा भी बना दिये जाते थे। कई बार इस प्रकार का चिह्न तो बना हुआ नहीं मिलता है लेकिन हस्तप्रत के बीचों-बीच इसी आकार का स्थान खाली छोड़ दिया जाता था। कागज पर लिखे हुए ग्रन्थों में विविध प्रकार की चित्रित मध्यफुल्लिकाएँ देखने को मिलती हैं। कहीं-कहीं तो लहियाओं ने अक्षरों को इस प्रकार से लिखा है कि स्वतः ही मध्यफुल्लिका बनी हुई दिखाई देती है।
छिद्रक : अधिकांशतः ताडपत्रीय प्राचीन हस्तप्रतों में छिद्रक मिलता ही है । यह हस्तप्रत के मध्यभाग में एक छोटा-सा छिद्र होता है। इस छिद्रक का हस्तप्रत संरक्षण हेतु महत्वपूर्ण योगदान है। इसी छिद्रक में एक पतली रस्सी पिरोकर ग्रन्थ के जितने फोलियो होते हैं उन्हें इकट्ठा करके ग्रन्थ के उपर-नीचे लकड़ी के पुट्ठे लगाकर एक-साथ बाँध दिया जाता है। क्योंकि हस्तप्रतों में सर्वाधिक नुकसान उनके शिथिल बन्धन के कारण भी होता है, इसलिए इस छिद्रक के माध्यम से हस्तप्रतों को कसकर बाँध दिया जाता था जिससे कोई पत्र खोए नहीं या आँधी आदि में उड़ न जाये, इस छिद्रक के माध्यम से एक प्रकार से कहें तो हस्तप्रत - बाइण्डिग का काम होता था साथ ही हस्तप्रतों को सुरक्षित रखने हेतु निम्नवत निर्देश भी लिखे हुए मिलते हैं -
तैलादक्षेज्जलाद्रक्षेद् रक्षेच्छिथिलबन्धनात् । परहस्तगताद्रक्षेदेवं वदति पुस्तकम् ।।
चन्द्रक : चन्द्रक भी हस्तप्रत के मध्यभाग में देखने को मिलता है चाँद के जैसा दिखने के कारण इसे चन्द्रक नाम दिया गया जान पड़ता है छिद्रक और चन्द्रक में फर्क सिर्फ इतना है कि हस्तप्रत में छिद्र न करके गोलाकार चिह्न बना दिया जाता था और उसमें एक छोटा-सा बिन्दु बना दिया जाता था जबकि छिद्रक ताडपत्रीय हस्तप्रत के मध्यक्षेत्र में छेद होता है। जान पड़ता है यह परम्परा छिद्रक के बाद की है। और छिद्रक की परम्परा को जीवित रखने हेतु ही कागज पर लिखी हुई प्रतों में चन्द्रक का प्रयोग होता होगा।
हस्तप्रतों में मिलनेवाले अन्य चिहन :
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अङ्कस्थान चिह्न - हस्तप्रतों में श्लोक संख्या लिखने हेतु या पंक्ति-संख्या लिखने हेतु या फोलियो संख्या लिखने हेतु अंकों का प्रयोग भी बहुतायत में मिलता है जो मुख्यतः सजाकर लिखने हेतु एक गोला बनाकर उसके अन्दर अङ्क लिखे हुए मिलते हैं यथा छह लिखना होता है तो इस प्रकार से लिखते हैं या फिर ।। ।। || इस प्रकार से भी लिखा हुआ मिलता है। कुछ प्रमुख अङ्कस्थान चिह्न निम्नलिखित हैं
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ताडपत्रीय हस्तप्रतों में क्रमाक के रूप में मिलनेवाले शब्द :
अनेकों ताडपत्रीय ग्रन्थों में क्रमाङ्क लिखने हेतु गणित की संख्याओं का प्रयोग न करके तत्कालीन प्रचलित लिपि के अक्षरों का उपयोग हुआ भी मिलता है। यथा
१. लिखने हेतु ॐ लिखा हुआ मिलता है। २. लिखने हेतु 'न' लिखा हुआ मिलता है।
५. लिखने हेतु 'र्तृ' लिखा हुआ मिलता है।
३. लिखने हेतु 'मा' लिखा हुआ मिलता है। हस्तप्रतों में कई स्थानों पर एक ही शब्द को दो या दो से अधिकबार पढ़ने हेतु उस शब्द को एक बार लिखकर उसके पीछे संख्या लीखी हुई मिलती है । यथा असणं २, असणं ४, अर्थात् असणं शब्द को दो बार या