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पंन्यास प्रवरश्री अमृतसागरजी अाचार्यपद प्रदान
महोत्सव विशेषांक
२७. कवलय माला- उद्योतनसूरिजी म. ने इस ग्रंथ की रचना वि. ८३५ में की है. प्राकृत कथा साहित्य में यह ग्रन्थ आभूषण रुप है. इस ग्रंथ में कथाओं के माध्यम से क्रोधादि छः अन्तर्शत्रुओं का विस्तृत वर्णन किया गया है.
२८. चेइयवंदण महाभाष्य(चैत्यवंदन महाभाष्य) - वादिवैताल शान्तिसूरिजी म. द्वारा रचित ८७४ गाथा प्रमाण इस ग्रन्थ में चैत्य अर्थात जिनमंदिर संबंधी विधि विस्तार पूर्वक वर्णित है. चैत्यवंदन करने का उद्देश्य, चैत्यवंदन के अधिकारी, वंदन काल, द्रव्यवंदन-भाववंदन के लक्षण इत्यादि का वर्णन प्ररूपित है.
२९. उपमितिभवप्रपंच कथा-सिद्धर्षि गणि ने इस ग्रंथ की रचना वि. सं. १२०० में की. जगत के बाह्य और अभ्यन्तर दो प्रकार सभी को अनुभव में आते हैं. अंतरंग जगत अपने पास होते हुए भी उसे देखने व जानने का प्रयत्न कोई नहीं करता है. अंतरंग दुनिया में क्या है, किस प्रकार के भाव इसमें निहित हैं, क्रोधादि भाव से आत्मा कैसे दुखी होती है, क्षमादि के संग आत्मा किस प्रकार सुखी होती है इत्यादि का कथाओं के माध्यम से वर्णन किया गया है.
३०. योगशास्त्र - कलिकाल सर्वज्ञ हेमचन्द्राचार्य रचित १२ प्रकाश-विभागों में विभक्त यह ग्रन्थ १००९ मूल श्लोक और टीका सहित १२००० श्लोक प्रमाण है. इस ग्रंथ में योग के द्वारा होने वाले लाभों का विस्तार पूर्वक वर्णन किया गया है. यदि आत्मिक गुणों का विकास करना हो, आरधना का सरल मार्ग चुनना हो, सम्यग्दर्शन प्राप्त करना हो, वैराग्य को मजबूत करना हो, संसार का स्वरूप समझना हो, कषायों को जीतना हो, इन्द्रियों को वश में करना हो, मन पर काबू करना हो, ममत्व को त्यागना हो, समत्व को धारण करना हो, ध्यान करने के लिए गुण प्राप्ति करना हो या धर्म-शुक्ल ध्यान में आरूढ होना हो तो इस ग्रंथ का अध्ययन करना लाभदायी सिद्ध होगा.
३१. त्रिशष्टिशलाका पुरूष चरित्र महाकाव्य - कलिकाल सर्वज्ञ हेमचन्द्राचार्यजी ने कुमारपाल महाराजा की विनती से ३६ हजार श्लोक प्रमाण इस महाकाव्य की रचना की है. इसमें २४ तीर्थंकर, १२ चक्रवर्ती, ९ वासुदेव, ९ प्रतिवासुदेव, ९ बलदेव एवं ९ प्रतिबलदेव सहित ६३ उत्तम पुरुषों के जीवन चरित्र का वर्णन सुन्दर उपदेश सहित किया गया है. १० पर्व एवं एक परिशिष्ट पर्व जिसमें भगवान महावीर देव की परम्परा के महापुरुषों का जीवन चरित्र व इतिहास संकलित
३२. जीवसमास प्रकरण - मलधारी हेमचन्द्रसूरिजी म. ने २८७ गाथा प्रमाण इस ग्रंथ में षड्द्रव्यों का वर्णन अनेक द्वारों से संक्षेप में किया है. जीवादि तत्त्व जानने का प्रयोजन व फल का निरुपण उपसंहार में किया गया है.
३३. प्रवचन सारोद्धार - आ. नेमिचन्द्रसूरिजी रचित यथा नाम तथा गुण वाले इस ग्रन्थ में जैन शासन के सारभूत पदार्थों का वर्णन किया गया है. चैत्यवंदन, अरिहंत परमात्मा, मुनि भगवंत, पांच प्रकार के चैत्य आदि पदार्थ भिन्न-भिन्न द्वारों से प्रस्तुत किये हैं. अन्य भी प्रायश्चित सामाचारी, जात-अजात, कल्प-दीक्षा, योग्य-अयोग्य-संलेखना-भाषा के प्रकार इत्यादि का संकलन है.
३४. प्रभावक चरित्र - आ. श्रीप्रभाचन्द्रसूरिजी ने इस ग्रन्थ में प्रभावक महापुरूषों का जीवन चरित्र सुन्दर ढंग से संकलित किये है. वज्रस्वामी प्रमुख महापुरुषों के जन्म से लेकर कालधर्म तक के वृतान्त अद्भुत मांत्रिक बातों से परिपूर्ण एवं रोचक है.
३५. हितोपदेशमाला - आ. प्रभानन्दसूरिजी द्वारा रचित इस ग्रंथ में सुविशुद्ध सम्यक्त्व, उत्तम गुणों का संग्रह, देशविरति तथा सर्वविरति इन चार गुणों में प्रबल पुरुषार्थ करना ही श्रेष्ठ मार्ग है, इत्यादि औपदेशिक बातों का वर्णन किया गया है.
३६. वीतराग स्तोत्र - कलिकाल सर्वज्ञ हेमचन्द्राचार्यजी ने कुमारपाल महाराजा की विनती से उनके स्वाध्याय हेतु इस ग्रन्थ की रचना की थी. परमात्मा के स्वरूप, अतिशय आदि अलौकिक बातों का वर्णन २० विभागों में वर्णित है.
३७. आचार दिनकर - आ. वर्धमानसूरि रचित इस ग्रन्थ के दो विभाग है. प्रथम में श्रावक योग्य १६ संस्कारों का वर्णन व दुसरे में यति आचारन्तर्गत योग-पदवी-व्याख्यान-संलेखना तथा प्रतिष्ठा संबंधी विधि-पूजन, विद्यादेवी, लोकांतिक
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