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________________ पंन्यास प्रवरश्री अमृतसागरजी आचार्यपद प्रदान महोत्सव विशेषांक विकसित करने में पूज्य आचार्य प्रवर के हृदय की गहराई से प्राप्त सफल आशीर्वाद एवं सभी मुनिवरों का बहुमूल्य मार्गदर्शन एक संबल की भाँति रहा है. सोने में सुगंध की तरह इस पवित्र तीर्थ में सर्वप्रथम बार पूज्य आचार्य श्री के शिष्यरत्न नमस्कार महामंत्र के साधक पंन्यास प्रवर श्री अमृतसागरजी को महामंत्र के तृतीयपद आचार्यपद पर आसीन करने का सुनहरा अवसर आया है. पुण्योदय से मिलनेवाला यह पदोत्सव हम सभी के लिए परम सौभाग्य की निशानी है. यह आचार्यपद प्रदान महोत्सव समस्त जैन समाज को गौरवान्वित एवं आह्लादित करने वाला होगा... शान्त, सौम्य और मौनप्रिय पूज्य पंन्यास श्री अमृतसागरजी को आचार्य पद से विभूषित करने के शुभ अवसर पर श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र के परिसर में नवनिर्मित भोजनशाला, पौषधशाला, अतिथि निवास, अल्पाहारगृह, आयंबिलशाला इत्यादि का शुभारम्भ भी होने जा रहा है यह हमारे लिए आनंद व गौरव का विषय है. जिनशासन की सेवा में आराधकों की भक्ति करने का हमारा सामर्थ्य इस सुविधा से बढेगा, हम ज्यादा अच्छी तरह से भक्ति कर पाएंगे. जिनशासन की धुरा को वहन करने की जिस पद में शक्ति सामर्थ्य निहित है ऐसे इस आचार्यपद प्रदान महोत्सव निमित्त ज्ञानतीर्थ के मुखपत्र श्रुतसागर को विशेषांक के रूप में प्रस्तुत करने का सद्भाग्य हमें प्राप्त हुआ है. ज्ञानतीर्थ के सभी कार्यकर्ताओं के उत्साही सहयोग से यह विशेषांक तैयार हो सका है. इस विशेषांक में हमने जैन धर्म, तत्वज्ञान, जैन साहित्य, जैनाचार्यों के अलौकिक गुणों, जैन राजाओं, मंत्रियों, श्रेष्ठियों, श्रावकों, श्राविकाओं, जैन आचार विचार, जैनतीर्थों, कोबातीर्थ व इस ज्ञानतीर्थ की विशिष्ट सेवाओं आदि अनेकविध जानकारियों स्वरूप सरस्वती का रसथाल परोसा है. हमे आशा ही नहीं किन्तु विश्वास है कि वाचकों को यह विशेषांक बहुत पसंद आयेगा. प्रस्तुत की गई सुन्दर ज्ञान सामग्री से उनके स्व-पर कल्याणकारी ज्ञान-विज्ञान में अभिवृद्धि होगी. इस कार्य में हमें जिन जिन महानुभावों का सहयोग मिला हैं वे सभी धन्यवाद के पात्र हैं, इतना ही नहीं वे हमारे प्रेरणा के स्रोत और जीवनदाता है. पूज्य आचार्यश्री एवं पूज्यश्री के सांनिध्यवर्ती मुनिवरों के सातत्यपूर्ण मार्गदर्शन का, संस्था के प्रमुख एवं प्रसिद्ध उद्योगपति श्री सुधीरभाई (टोरेन्टग्रूप), श्री प्रवीणभाई आदि समस्त ट्रस्टीवर्यों एवं कार्यवाहक समिति के सदस्यों की प्रेरक भावना और दानदाताओं के सहृदयी सौजन्य का मैं प्रमोद भावना से अनुमोदन करता हूँ. और यह कामना करता हूँ कि भविष्य में भी इसी तरह आप सभी का साथ सहयोग हमें मिलता रहेगा, जिसकी बदौलत हम जिन शासन की गरिमापूर्ण साहित्य सेवाओं को विस्तृत करने में सफल हो. परम पूज्य आचार्यश्री की पावन प्रेरणा से स्थापित इस ज्ञानतीर्थ में संगृहीत जैन धर्म का विशाल श्रुत साहित्य भावी पीढी को निरंतर लाभान्वित करता रहे, इसीलिए इस ज्ञाननिधि को संरक्षित-संवर्द्धित करने में जैन समाज को भी तन-मनधन से सहयोग करने की भावना के साथ आगे आना होगा, ताकि श्रुतज्ञान की यह पवित्र परम्परा सुदीर्घजीवी बनी रहे. यही मंगल कामना. मनोज र. जैन, ज्ञानतीर्थ, कोबा. जो देश, कुल, जाति, रूप आदि अनेक विध गुण-गणों से संयुक्त हैं और जो युगप्रधान होते हैं, उन आचार्यों को भावभरी वंदना. सीजन्य के. चंद्रकान्त एन्ड कंपनी, मुंबई
SR No.525262
Book TitleShrutsagar Ank 2007 03 012
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoj Jain
PublisherShree Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2007
Total Pages175
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size32 MB
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