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पंन्यास प्रवरश्री अमृतसागरजी आचार्यपद प्रदान
महोत्सव विशेषांक
संपादकीय देवों को भी दुर्लभ यह मानव जीवन पूर्व जन्मों के संचित महापुण्य से प्राप्त होता है. इस मनुष्य जीवन का मुख्य लक्ष्य मोक्ष की प्राप्ति है. इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए आवश्यक ज्ञानादि को बतानेवाले आज न तो तत्वज्ञान के प्रकाशक सूर्य समान जिनेन्द्र देव मौजूद हैं, न चन्द्र समान केवली या चतुर्दशपूर्वधर श्रुतज्ञानी ही. वर्तमान में तो प्रदीप के समान यथार्थ स्वरूप को प्रकट करने वाले केवल आचार्य भगवंत ही विद्यमान हैं. इसलिए, एकमात्र विकल्प है, पूर्वाचार्यों द्वारा रचित श्रुतज्ञान का अध्ययन-मनन और आगम सूत्रार्थ के धारक आचार्य भगवंतों की निश्रा. जिसके आलंबन से हम अपना मानव जीवन सफल बना सकते हैं.
जिनशासन में आचार्य को 'तित्थयर समो सूरि' कहा गया है. तीर्थंकरों की गैर मौजुदगी में नवपद के तृतीयपद पर विराजमान आचार्य को लघुतीर्थंकर माना गया है. ऐसी गरिमामय भगवान महावीर की प्रभावक आचार्य पाट परंपरा में वर्तमान में राष्ट्रसंत आचार्य श्रीमत् पद्मसागरसूरीश्वरजी का नाम अग्रपंक्ति में है.
पूज्यश्री के द्वारा जैनशासन की और लोककल्याण की जो प्रभावना हो रही है वह इस काल के जैन इतिहास में अभूत्पूर्व मानी जायेगी. आचार्यश्री की प्रेरणा से स्थापित श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र, आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिरकोबा जैन धर्म के इतिहास, कला, स्थापत्य एवं श्रुतविरासत की राजधानी कहा जा सकता है.
पूज्य आचार्य श्री की सूक्ष्म दृष्टि, यत्र-तत्र उपेक्षित-बिखड़े पड़े भारतीय पुरातत्व व प्राचीन ज्ञान सम्पदा की मोतियों को ढूँढने में सक्षम हैं, भारत भर की ८०,००० से ज्यादा कि.मी. की पदयात्रा के क्रम में उन्होंने अनेक पुरातात्विक एवं ऐतिहासिक ग्रंथों व विरासत का पुनरुद्धार किया है. राष्ट्रसंत की इस अमर सष्टि को आनेवाली पीढ़ियाँ अनमोलनिधि के रूप मे संजोकर रखेगी.
जैनसाहित्य को संरक्षित-संवर्द्धित करने की शृंखला की एक महत्त्वपूर्ण कडी के रूप में स्थापित यह ज्ञानमंदिर लाखों की संख्या में हस्तलिखित व मुद्रित ग्रंथों से समृद्ध है. इतना ही नहीं किन्तु साधु-साध्वीजी भगवंतों, मुमुक्षुओं, विद्वानों और अध्ययनार्थियों को अपनी निःशुल्क सेवा वर्ष के ३६० दिन करते हुए एक कीर्तिमान स्थापित कर रहा है. भारतीय ग्रंथालय प्रणालि को अनुभवों के आधार पर संजोकर कंप्यूटर के माध्यम से संशोधन के क्षेत्र में किये गये अनुसंधान इस ज्ञानतीर्थ की अपनी खास पहचान है, जिसका लाभ चतुर्विध संघ और संशोधक जगत को निरंतर हो रहा है.
ग्रंथों को कम्प्यूटर प्रोग्राम के अन्तर्गत सूचीकरण कराने से वांछित ग्रंथ तत्काल उपलब्ध होते देख यहाँ आने वाले साधुसाध्वीजी भगवंत, विद्वान व वाचक आह्लादित होकर मुक्तकंठ से प्रशंसा करते नहीं थकते हैं. ज्ञानतीर्थ की विविध प्रवृत्तियों से जो लाभ हो रहा है वह मुनि श्री अजयसागरजी के श्रुतज्ञान के प्रति अहोभाव का और पूज्य गुरुदेव श्री के स्वप्न को सफल करने के लिए समर्पित जीवन का परिचायक है. यहां की प्रवृत्तियों को बहुजन हिताय बहुजन सुखाय उपयोगी बनाने में पूज्यश्री के शिष्य परिवार का महत्वपूर्ण योगदान हम सभी के लिए गौरवप्रद है.
ज्ञानी गुरुभगवन्तों सहित श्री संघ की ज्ञानलक्षी सेवाओं की परिपूर्ति करने के लिए हमारी सुझबुझ और क्षमताओं को
जो अनन्त, अनुत्तर, निरुपम, शाधत तथा सर्वदा आनन्द रूप सिद्ध स्थान को प्राप्त हो चुके हैं, उन
आचार्यों को भावभरी वंदना.
सुधीरभाई नानालाल कोठारी परिवार, मुंबई