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________________ पन्यास प्रवरश्री अमृतसागरजी आचार्यपद प्रदान महोत्सव विशेषांक आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमन्दिर हमारा संकल्प हम विश्व के समक्ष प्रस्तुत करेंगे जैन व आर्य साहित्य की धरोहरों को संशुद्ध कर लोकोपयोगी ढंग से प्रकाशन कर जैन साहित्य की गरिमा को. हमारा आनंद व संतोष निहित रहेगा * श्रमणवर्ग, विद्वज्जन एवं प्रत्येक जिज्ञासुओं की ज्ञान-पिपासा की तृप्ति में हमारा मुद्रालेख रहेगा * जैन साहित्य के संग्रहण के क्षेत्र में श्रेष्ठता एवं निपुणता का हम संकलन करते हैं, जैन व आर्य धरोहर रुप भ हस्तप्रतों का, जो यत्र-तत्र बिखरी पड़ी है. * मुद्रित पुस्तकों का, जो विश्वभर से अनेक भाषाओं में निरंतर प्रकाशित हो रही है हम तत्पर हैं यहाँ उपलब्ध साहित्य एवं अन्य विविध सेवाओं के द्धारा आत्मार्थी जिज्ञासुओं की ज्ञान पिपासा को शांत करने हेतु. हम प्रयासरत हैं *उचित व्यक्ति को उचित अध्ययन सामग्री, उचित समय पर, उचित स्थल पर उपलब्ध कराने हेतु. हम अपनी धरोहर रूप साहित्य को * सुरक्षित करेंगे, जो विविध प्रकार से विनष्ट हो रहा है. * व्यवस्थित करेंगे, जो अस्त-व्यस्त है. * मजबूती देंगे, जो जीर्ण-शीर्ण है. * चिरस्थाई करेंगे, विविध माध्यमों के द्वारा. * संजोकर रखेंगे, हर तरह से. हम हमेशा सहयोग करेंगे * जैन साहित्य के क्षेत्र में होने वाले प्रत्येक विशिष्ट कार्यों को. વીણ સમાધિસ્થાઇ[. દશા એષણાદોષ, પાંચ માણૌષણા થાને એક પ્રકારના Hિથાવના (13પની ફlliા નાની છ બીણ ગુણોથી યુકત માથાને વંદol 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0000000000 NASCIIC DIरशे6,ajes aiyલાબેન રણscલાલ શેઠ, મુંબઈ 58
SR No.525262
Book TitleShrutsagar Ank 2007 03 012
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoj Jain
PublisherShree Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2007
Total Pages175
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size32 MB
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