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________________ पंन्यास प्रवरश्री अमृतसागरजी भाचार्यपद प्रदान महोत्सव विशेषांक सिरपुर और घोघा से महत्वपूर्ण जैन धातप्रतिमाएँ प्राप्त हुई है. दक्षिण भारत में लिंगसर, बापटला में श्रवणबेलगोला जैन धातु शिल्पकला के महत्वपूर्ण स्थान हैं. यहाँ पर कांस्य प्रतिमाएँ ७वीं से १९वीं शताब्दी के मध्य की तीर्थंकर आदिनाथ से महावीर स्वामी तक की है. इन प्रतिमाओं में अपने-अपने क्षेत्र की विशेषताएँ, कला एवं उत्कीर्ण प्रशस्तियों की विशेषताएँ देखी जाती है, इनमें से कई प्रतिमाओं के पीछे प्रशस्तियाँ ऐसी है, जो जैन इतिहास एवं परंपरा के संशोधन के लिए महत्वपूर्ण हैं. वसंतगढ कांस्य प्रतिमानिधि वसन्तगढ़ शैली की धातु निर्मित तीर्थंकरों आदि की ६-८वीं शताब्दी की प्रतिमाएँ अपनी अलौकिक एवं अभूतपूर्व मुद्रा के साथ दर्शकों को आकर्षित करती है. यहाँ पर ईसा की ३री से १९वीं शताब्दी तक की विभिन्न स्थानों एवं शैलियों की पाषाण एवं धातु निर्मित प्रतिमाएँ भी प्रदर्शित है.. जिन प्रतिमा आदिनाथ जिन प्रतिमा अकोटा एवं वसंतगढ की प्रतिमाओं में बहुत कुछ समानता है. बड़े नेत्र, विस्तृत ललाट, थोड़ी नुकीली नाक, सुडौल मुख तथा बौने धड़ पर रही छोटी ग्रीवा, नुकीली अंगुलियाँ, चौडी छाती, हाथ और पैर सुनिर्मित एवं वक्षस्थल पर श्रीवत्स चिह्न प्रारंभिक पश्चिम भारतीय शैली के लक्षण है. धोती में चिह्न प्रारंभिक पश्चिम भारतीय शैली के लक्षण हैं. तीर्थंकर के शरीर पर रही धोती में समान्तर पंक्तियों के मध्य में पुष्प अंकित है, जो एक आद्यकला का प्रतीक है. परमार्हत कुमारपाल एवं जगतशेठ श्रुत खण्ड श्रुत खण्ड इस संग्रहालय का महत्वपूर्ण खण्ड है, जो सामान्यतया अन्य किसी संग्रहालय में नहीं होता है. इस खण्ड में प्राचीन से अर्वाचीन काल तक की श्रुत ज्ञान परम्परा प्रदर्शित की गई है. वर्तमान परिस्थितियों में जहाँ चारों ओर हिंसा, अत्याचार और भ्रष्टाचार जैसी बुराईयाँ फैल रही है. फिर भी हमलोगों में सत्य, अहिंसा एवं क्षमा जैसी भावना आंशिक रूप में भी है, तो उसका एक मात्र कारण है, हमारे जैनाचार्यों द्वारा रचित उपदेश प्रधान श्रुत सम्पदा, तीर्थंकर भगवान महावीर ने कहा है कि जगत के कल्याण में ही स्व का कल्याण है. हमारे जैनाचार्यों एवं पूर्वजों ने भावी સાત ભય, સાત પિpsણણા, સાતપાોષણા, રાત સુખ અને આઠ વાદળી જ્ઞાતા આવા છolીણ ગુણોથી યુક્ત થાીિવીલળી सोन्यસી.દિનેશ એન્ડ કંપની, ajolઈ 40
SR No.525262
Book TitleShrutsagar Ank 2007 03 012
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoj Jain
PublisherShree Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2007
Total Pages175
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size32 MB
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