________________
पंन्यास प्रवरश्री अमृतसागरजी आचार्यपद प्रदान
महोत्सव विशेषांक
आचार्य श्री कैलाससागरसूरि स्मृति मंदिर (गुरु मंदिर) :
पूज्य गच्छाधिपति आचार्यदेव श्रीमत् कैलाससागरसूरीश्वरजी के पुण्य देह के अन्तिम संस्कार स्थल पर पूज्यश्री की पुण्य-स्मृति में संगमरमर का कलात्मक शिल्पकारी, पच्चीकारीव चित्रकारी युक्त गुरु मंदिर निर्मित किया गया है. स्फटिक रत्न से निर्मित अनन्तलब्धि निधान श्री गौतमस्वामीजी की मनोहर मूर्ति तथा स्फटिक से ही निर्मित गुरु चरण-पादुका दर्शनीय एवं वंदनीय हैं. इस मंदिर में दीवारों पर संगमरमर की जालियों में दोनों ओर श्रीगुरुचरणपादुका तथा गुरु श्री गौतमस्वामी के जीवन की विविध घटनाओं का तादृश रूपांकन करने का सफल प्रयास किया गया हैं, आराधना भवन :
आराधकों को साधना-धर्म-आराधना करने में सुविधा हो, इसलिए आराधना भवन का निर्माण किया गया है. प्राकृतिक पवन एवं प्रकाश से पूर्ण इस आराधना भवन में मुनि भगवंत स्थिरता कर अपनी संयम आराधना के साथ-साथ विशिष्ट ज्ञानाभ्यास, ध्यान, स्वाध्याय आदि का योग प्राप्त करते
मुमुक्षु कुटीर :
जिज्ञासुओं तथा ज्ञान पिपासुओं के लिए मुमुक्षु कुटीरों का निर्माण किया गया है. दस कमरों वाले इस मुमुक्षु कुटीर का हर खण्ड जीवन यापन सम्बन्धी प्राथमिक सुविधाओं से सम्पन्न है. संस्था के नियमानुसार मुमुक्षु, साधक, अन्वेषक आदि सुव्यवस्थित रूप से यहाँ रहकर उच्चस्तरीय
ज्ञानाभ्यास, प्राचीनअर्वाचीन जैन साहित्य का संशोधन, मुनिजनों से तत्त्वज्ञान तथा विद्वान पंडितजनों से मार्गदर्शन प्राप्त कर सकते हैं. भोजनशाला एवं अल्पाहार गृह :___यहाँ आनेवाले श्रावकों, दर्शनार्थियों, मुमुक्षुओं, विद्वानों एवं तीर्थयात्रियों की सुविधा हेतु जैन धर्मानुकूल सात्त्विक भोजन उपलब्ध कराने की सुन्दर
उपजाह अनुपयह पाया व्यवहार प्रतिष्टिवादले जाता
आचार्यों को भावभरी वंदना.
20 सौजन्य
अल्पेश डायमंड, मुंबई
33