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पंन्यास प्रवरश्री अमृतसागरजी आचार्यपद प्रदान
महोत्सव विशेषांक
ताजी हवा का आवागमन उसमें रहता है. इसके अलावा शरीर को सूर्य की रोशनी से विटामिन मिलता है. हमारे शरीर के जर्स का नाश होता है. पश्चिम में इसलिए लोग सनबाथ करते हैं . किन्तु हमने बिना सोचे पैंट सूट धारण कर लिया और अनेक बिमारियों को आमंत्रण दे डाला. अंग्रेज टाई पहनते है तो इस धार्मिक भावना से कि क्राइस्ट के शूली पर लटक जाने की याद आती रहे. पर हम किस देवता के शूली पर चढने की याद में टाई लगाते हैं.
विज्ञान -विकृत विज्ञान : मुझे एक पत्रकार ने पूछा आज का विज्ञान इतना एडवान्स हो गया है . भौतिक दृष्टि से
बहुत खोज की गहराई में उतर चुका है और नई वस्तुओं का काफी आविस्कार हो चुका है. उसके बारे में आपको कुछ कहना हैं.
मैने कहा- आज का विज्ञान इतना विकृत हो चुका है कि निश्चित रुप से एक दिन मानव जाति का विनाश करके _रहेगा. जो विज्ञान विशिष्ट ज्ञान था. वह आज विकृत बन चुका है.
एटम बम बनाकर इस विश्व को विज्ञान ने क्या दिया? एटमिक एनर्जी के रुप में जहाँ विश्व का कल्याण होना था, उसका दुरुपयोग किया जा रहा है. इसका निर्माण करने वाला वैज्ञानिक जिसने अपनी खोज राष्ट्र को अर्पण कर दी, उस व्यक्ति ने अपनी खोज का परिणाम जब देखा तो स्तब्ध रह गया. हिरोशिमा-नागासकी पर एटमिक विस्फोट जब उसने टी.वी. पर देखा तो उसे इतना मानसिक क्लेश हुआ कि वह विक्षिप्त हो गया. मरते समय भी उसके मुंह पर यही शब्द थे- क्तड झण्थ्य ढ़दृ द्यदृ ण्ड्थ्य. वह व्यक्ति मर कर निश्चित रुप से नर्क में जायेगा. जिसने इस मानव जाति का घोर अहित किया है. इस तरह के अनेक अस्त्र आज तो बन चुके हैं. बुद्धि का दुरुपयोग आज इतना भयंकर हो गया कि उस विशिष्ट ज्ञान को हमने विकृत ज्ञान बना दिया. हमारी बुद्धि पर हमारा अनुशासन नहीं रहा, हमारे विचारों में विवेक नहीं रहा.
विकृत विज्ञान ने कब्जा कर रखा है जिसके कारण आज मानव जाति का अस्तित्व ही खतरे में हैं. किस प्रकार इस विकृत विज्ञान द्वारा उत्पन्न अशांति का निवारण हो, इसी पर हमें विचार करना है. इस अशांति का मूल कारण क्या है? उसे हमें देखना है.
परमात्मा की खोज : सेठ मफतलाल राजा के परम मित्र थे. राजा के महल में ही रहते थे. एक दिन राजा ने पूछ लिया- मैं बहुत दिनों से साधना में परमात्मा की खोज में लगा हूँ. परन्तु मुझे कहीं परमात्मा ही नजर नहीं आया.
सेठ मफतलाल बडे बुद्धिशाली थे. उन्होंने कहा- आपके खोज का तरीका ही गलत है. राज महल में रहकर कोई परमात्मा की खोज हो सकती है ? यह कोई खोजने का तरीका है ? मफतलाल ने सोचा -राजा को सही रास्ता दिखाना चाहिए. दो चार दिन बाद रात्रि के ग्यारह बजे सेठ मफतलाल राजमहल आये. सीधे छत पर चढ गये. लालटेन लेकर कुछ खोजने लग गये, राजा ने सोचा, ये मफतलाल रात्रि में क्या खोज रहा है. जाकर उससे पूछा-मफतलाल यहाँ क्या दूढ रहे हो ?
मेरे घर से ऊँट चला गया है, खो गया है, वही खोज रहा हूँ, मफतलाल ने उत्तर दिया. अरे, मूर्ख आदमी ! राजमहल की छत पर कहीं ऊँट मिलेगा.
मफतलाल ने जवाब तैयार ही रखा था- हुजूर आप भी तो परमात्मा को यही खोज रहे हैं. वे तो बहुत बड़े हैं. जब | यहाँ ऊँट नहीं मिल सकता तो यहाँ इस राजमहल में परमात्मा कहाँ से मिलेगा.
राजा विचार में पड़ गया-बात तो इसने सही कही है, जो चीज त्याग के माध्यम से मिलने वाली है, वह प्राप्ति में कहाँ से मिलेगी.
तो परमात्मा को खोजने का हमारा तरीका ही गलत है. त्याग की भूमिका पर साधना करें तभी परमात्मा को खोजने में सफलता मिलेगी.
मृत्यु में ही जीवन है : मृत्यु एक शाश्वत सत्य है. जन्म के साथ ही मृत्यु की गाडी दौडनी शुरु हो जाती है और जीवन के लक्ष्य तक पहुंचाने के बाद ही छोडती है. रवीन्द्र नाथ टैगोर ने विश्व प्रसिद्ध काव्य गीतांजली, जिस पर उन्हे नोबेल
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