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________________ पंन्यास प्रवरश्री अमृतसागरजी आचार्यपद प्रदान -महोत्सव विशेषांक जिनशासन की उत्कृष्ट प्रभावना से प्रेरित होकर विविध संघों एवं गणमान्य महानुभावों द्वारा आपश्री को राष्ट्रसन्त, प्रवचन प्रभावक, सम्मेतशिखर तीर्थोद्धारक, प्रखरवक्ता, युगदृष्टा आदि सम्मानजनक पदवियों से अलंकृत किया. श्रुतज्ञान के प्रति आपकी निष्ठा बडी गजब की है. दीक्षा लेने के बाद से आज तक आप निरंतर कार्यरत है. समग्र भारतवर्ष सहित पडोसी देश नेपाल की जैन एवं जैनेतर जनता के मन में अपनी एक अमिट छाप छोडी है, जिसे वह कभी भूला नहीं सकती. आपके कदम जहाँ भी पड़े, वहां की धरा पर निवास करने वालों ने आपको अपने सद्गगुरु के रूप में माना है, जैन समाज के यक्ष प्रश्नों का सुखद समाधान करने में आप लब्धप्रतिष्ठ है. संघों में एकता कायम करना, जैन धर्म के विविध विशेषज्ञों जैन डॉक्टर्स, सी. ए., वकील, युवक और व्यापारी आदि को संगठित करना, तीर्थ भूमियों का संरक्षण एवं समुद्धार, जनसमुदाय को सदाचारमय जीवन जीने के लिए अभिप्रेरित करना आदि सम्पूर्ण मानव जाति के कल्याण के लिए ही जीने का आपका दृष्टिकोण एक मानव मसीहा के अवतार को साबित करता है. सभी को साथ में लेकर चलने की भावना के कारण पूज्यश्री समग्रजैन समाज सहित अन्य धर्मावलम्बी सन्तों के बीच भी लोकप्रिय बने हैं। इन्हीं उदात्त गुणों के कारण आपने सभी के हार्दिक सन्मान प्राप्त करने का गौरव हासिल किया है. _ यूं तो आपश्री की निश्रा में जिनशासन की प्रभावना के अनेकानेक उत्कृष्ट कार्य संपादित हुए है. अनेक जिनालयों की प्रतिष्ठाएँ हुई हैं, बहुसंख्यक जिनबिम्बों की अंजनशलाकाएँ सम्पन्न हुई हैं तथा समाजोपयोगी कार्य संपन्न हुए है फिर भी श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र, कोबा तीर्थ एवं यहाँ विकसित प्राचीन अर्वाचीन ग्रन्थों से समृद्ध ज्ञानतीर्थ रूप आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर पूज्य आचार्य श्री की समाज को अनमोल देन है. जिसे इस कलियुग में जिनशासन की अनुपम सेवा, श्रुतभक्ति और भव्य जीवों के आत्म कल्याण की मिसाल के रूप में युगो-युगों तक आने वाली पीढियाँ संजोकर रखेंगी. वीतराग पथ है वीरों का, कायरों का काम नहीं। शासन है यह महावीर का, बुजदिलों का नाम नहीं। संघर्षों में जो व्यंग बाण सहते हैं, आजीवन पथ पर दृढता से रहते है। जब फलितार्थ होता है अथक परिश्रम, तब वे ही विरोधी बुद्धिमान कहते है। 126
SR No.525262
Book TitleShrutsagar Ank 2007 03 012
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoj Jain
PublisherShree Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2007
Total Pages175
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size32 MB
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