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________________ पंन्यास प्रवरश्री अमृतसागरजी आचार्यपद प्रदान महोत्सव विशेषांक परंपरा में मुनिश्री सुखसागरजी हुए. वे उच्च कोटि के संत पुरुष थे. आपकी पाट पर बीसवीं सदी के महान योगी आचार्य श्री बुद्धिसागरसूरीश्वरजी महाराज हुए. जिन्होंने अल्प समय में योग साधना के माध्यम से जैन जैनेत्तर सबों के लिऐ जीवनोपयोगी १०८ से अधिक अमर ग्रन्थों का निर्माण किया. महुडी- गुजरात में आपने श्री घण्टाकर्ण महावीरदेव को प्रगट कर श्रद्धालु जनता के सहायतार्थ वचनबद्ध किया था. आज भी वहाँ लाखो की संख्या में लोग दर्शन करने जाते हैं. जैन शिक्षण संस्थानों एवं ज्ञानमंदिरों के निर्माण हेतु उन्होंने बहुमूल्य योगदान किया है. आज कई जैन बोर्डिंग, जैन गुरुकुल तथा जैन ज्ञानभंडार उनकी कृपा दृष्टि के ही फलस्वरूप हैं. योगनिष्ठ आचार्य श्री बडे विद्वान और प्रतिभा सम्पन्न थे. उनकी वाणी अध्यात्मपूत व अनुभव गम्य होती थी. श्रीमान सरकार सयाजीराव गायकवाड (बडौदा) उनके प्रवचनों को बडी श्रद्धा से सुनते थे. उनकी परंपरा में शान्तमूर्ति आचार्य श्री कीर्तीसागरसूरिजी एवं विद्वान आचार्य श्री अजितसागरसूरीश्वरजी हुए. जिन्होंने भीमसेन चरित्र प्रमुख संस्कृत व गुजराती भाषाबद्ध कई ग्रन्थ बनाये. उनकी पाट पर तपस्वी मुनिश्री जितेन्द्रसागरजी एवं वर्तमान गच्छाधिपति आचार्य श्री सुबोधसागरसूरीश्वरजी महाराज हुए. मुनिश्री जितेन्द्रसागरजी की पाट पर हुए महान जैनाचार्य श्री कैलाससागरसूरीश्वरजी महाराज के नाम से जैन जगत में शायद ही कोई अपरिचित होगा, आपकी साधना बडी अनूठी थी. पंजाब आपकी जन्म भूमि थी. आप में एक सच्चे संत के दर्शन होते थे. श्री सीमंधर स्वामी जिन मंदिर - महेसाणा इत्यादि तीर्थधाम आपकी सत्प्रेरणा एवं सान्निध्य में बने हैं. महावीर जैन आराधना केन्द्र कोबा (गांधीनगर-गुजरात) में विश्व का सबसे बडा और अत्याधुनिक आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमन्दिर एवं शिल्पकला में बेजोड समाधि मन्दिर आपकी स्मृति में बने है. जिनशासन में अपूर्व लोकप्रियता और उँची प्रतिष्ठा पाने पर भी आचार्य श्री का जीवन अत्यन्त सादगी पूर्ण था. उग्र विहार और शासन की अनेक प्रवृत्तिओं में संलग्न होते हुए भी आप अपने आत्मचिन्तन, स्वाध्याय और ध्यानादि आत्मसाधना के लिए पूरा समय निकाल लेते थे. जिनशासन के महान प्रभावक के रूप में आचार्य श्री सदियों तक भूलाए नही जा सकेंगें. इनके हाथों हुई शासन प्रभावना का भी एक लम्बा इतिहास है. परन्तु आचार्य श्री की पहचान तो उनके व्यक्तित्व और ज्ञान से होती थी. आचार्य श्री का जीवन अपने आप में अनूठा, अनोखा, अद्वितीय, अनुपम एवं आदर्श था. आपकी पाट पर विद्वान आचार्य श्री कल्याणसागरसूरिजी महाराज वर्तमान में अनेकविध शासन प्रभावना के द्वारा जिन शासन में जाने जाते हैं. आपके पट्टधर राष्ट्रसन्त, प्रखर वक्ता, युगप्रभावक, आचार्य श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी महाराज जो भगवान महावीर की पाट परम्परा में ७७ वीं पाट पर बिराजमान है. आपके व्यक्तित्व से सम्पूर्ण जैन व जैनेतर समुदाय परिचित है. आपका जन्म अजीमगंज (बंगाल) में हुआ. बचपन से ही आप माता-पिता के सुसंस्कारों को ग्रहण करते हुए धार्मिकता की ओर अग्रसर हुए. धार्मिक व व्यावहारिक शिक्षा अजीमगंज और शिवपुरी (म.प्र) में ग्रहण की. आपश्री स्वामी विवेकानन्द के साहित्य को बचपन से ही पढने का शौक रखते थे. युवावस्था के प्रारम्भ से ही भारत भ्रमण करने निकल पड़े. विद्वानों की संगति एवं शास्त्रों के अध्ययन तो शुरु से ही आपकी विशिष्ट अभिरुचि रही है. साणंद (गुजरात) की धन्य धरा पर आप वि.सं. २०११ में महान गच्छाधिपति आचार्य श्री कैलाससागरसूरीश्वरजी महाराज के वरद हस्तों उन्हीं के शिष्य प्रवर पूज्य आचार्य श्री कल्याणसागरसूरीश्वरजी महाराज के शिष्य बने. भागवती दीक्षा ग्रहण करने के बाद मुनिश्री पद्मसागरजी के बहुश्रुत नाम से जैन जगत में प्रसिद्ध हुए. आपश्री की साधना, तप एवं शासन प्रभावना के उत्कृष्ट कार्यों को देखते हुए अहमदाबाद में मार्गशीर्ष सुदि-५, वि.सं. २०३० में महोत्सव पूर्वक गणिपद, जामनगर में वि.सं. २०३२ में पंन्यास पद तथा कुछ समय पश्चात् श्री सीमंधरस्वामी जिन मन्दिर महेसाणा तीर्थ के प्रांगण में दादागुरुदेव आचार्य श्री कैलाससागरसूरीश्वरजी महाराज की अध्यक्षता में विशाल साधु साध्वी भगवन्तों की पुनीत उपस्थिति में वि.सं. २०३३ को आचार्य पद से विभूषित किया. आचार्य पदवी के बाद आपने पूरे भारत में पदयात्रा कर मानव कल्याण के जो कार्य किये उनका वर्णन करने पर एक महाकाय ग्रन्थ बन सकता है. 125
SR No.525262
Book TitleShrutsagar Ank 2007 03 012
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoj Jain
PublisherShree Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2007
Total Pages175
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size32 MB
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