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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (332 श्रुत सागर, भाद्रपद २०५९ प्रति में विद्यमान एकाधिक कृति तथा कृति परिवारों से संबंधित विस्तृत सूचनाएँ जैसे कृति नाम, कर्ता, कर्ता की गुरु-परम्परा एवं गच्छ, कर्ता का हयाती वर्ष, भाषा, कृति प्रकार, परिमाण, अध्याय, आदिवाक्य. अन्तिमवाक्य, रचना स्थल, रचना वर्ष, रचना प्रशस्ति आदि विशेष जानकारियाँ रोचक पद्धति से प्रस्तुत की गईं हैं. निस्संदेह इस प्रकाशन से श्रमणवर्ग, विद्वान, संशोधक तथा ज्ञानाराधकों को सबसे ज्यादा लाभ होने वाला है. यह मील का पहला पत्थर है. विश्वास किया जाता है कि इस कार्य के संयोजन से ज्ञान के संप्रसारण क्षेत्र में और भी नये मानक स्थापित किये जा सकेंगे. ज्ञातव्य हो कि हस्तलिखित शास्त्रग्रंथ जब यहाँ पर प्राप्त हुए थे, तब इनमें से ढेर सारे शास्त्र अत्यंत अस्तव्यस्त, जीर्ण व नष्टप्राय हालत में थे. अन्य कार्यों के साथ ही इन शास्त्रों को व्यवस्थित कर इन्हें सुरक्षित करने का श्रमसाध्य कार्य भी पूरी लगन के साथ चल रहा है. इस कार्य के साथ ही कम्प्यूटर में सभी हस्तलिखित तथा मुद्रित वाचन सामग्री की पूर्व प्रविष्ट सूचनाओं की शुद्धता देखने, नियमित नवीन प्रकार की सूचनाओं को प्रविष्ट करने की सुविधा उपलब्ध किये जाने के कारण पूर्व प्रविष्ट सूचनाओं को अद्यतन करने, सूक्ष्मातिसूक्ष्म उपलब्ध जानकारी के आधार पर विस्तृत विवरण प्राप्त हो सके, इस हेतु नवीन संशोधन एवं संपादन का कार्य भी संस्था के ही विशेषज्ञ पंडितों की एक टीम द्वारा किया जा रहा है. हमें अवगत कराते हुए आनंद हो रहा है कि नियमित तौर पर और अधिक हस्तप्रतों तथा मुद्रित प्रकाशनों का निरंतर आगमन जारी है. लगभग सत्रहवीं शताब्दी से अब तक प्रकाशित जैन, वैदिक, बौद्ध तथा संलग्न ज्ञान शाखाओं के महत्तम प्रकाशनों की लगभग १,१०,००० प्रतियाँ प्राप्त की जा चुकी हैं. श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र, कोबा तीर्थ आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर व इसके प्रणेता आचार्य श्रीमत् पद्मसागरसूरि महाराज द्वारा अनुपम श्रुतोद्धार श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र- कोबा तीर्थ अपनी प्राचीन श्रुतनिधि के संरक्षण व संवर्धन के लिए आज विश्वभर में सुप्रसिद्ध है. आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर में संगृहीत प्राचीन जैन व जैनेतर हस्तप्रतों का विशाल ज्ञानभंडार भारतभर में अपने ढंग का एक अद्वितीय संग्रह है. ग्रंथालय सूचना के क्षेत्र में अपने अनूठे तरीके से कम्प्यूटर आधारित विशेष आधुनिक सूचना पद्धति के द्वारा यह ज्ञाननिधि ज्ञान-पिपासु साधक वर्ग, श्रमण समुदाय, विद्वान समूह व आम जनता के लिए एक सुन्दर उपलब्धि स्रोत बनी है. यहाँ पर न केवल एकाध प्रवृत्ति का स्रोत है, वरन् सम्यग् ज्ञान-दर्शन-चारित्र की सामग्रियों का भी त्रिवेणी संगम हुआ है जिन्होंने भी इस ज्ञानतीर्थ का लाभ लिया है या स्पर्शना की है ; वे चाहे सामान्य व्यक्ति हो या विद्वान, गृहस्थ हो या साधु, श्रमण हो या संन्यासी सभी ने अपनी जिज्ञासा परितृप्त कर यहाँ के लिए मुक्त कंठ से प्रशंसा भरे आशीर्वचन प्रगट किए हैं, कर रहे हैं. इस क्षेत्र में जैन समाज व प्रमुख भारतवासियों को बड़े गौरव का अनुभव हो रहा है. For Private and Personal Use Only
SR No.525261
Book TitleShrutsagar Ank 2003 09 011
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoj Jain, Balaji Ganorkar
PublisherShree Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2003
Total Pages44
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size1 MB
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