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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रुत सागर, भाद्रपद २०५९ प्रोग्राम के तहत कम्प्यूटर पर इनकी डबल एन्ट्री करवाई जा रही है. १. पाइअसद्दमहण्णवो की सिंगल व डबल एन्ट्री हो चुकी है एवं प्रथम प्रूफ का कार्य चल रहा है. २. अर्धमागधी कोश के पांचो भागों की सिंगल एन्ट्री हो चुकी है एवं प्रथम चार भागों की डबल एन्ट्री ___ हो चुकी है, पांचवें भाग की डबल एन्ट्री चल रही है. ३. शब्दरत्न महोदधि की सिंगल एन्ट्री हो चुकी है एवं प्रथम भाग की डबल एन्ट्री हो रही है. ४. कम्प्यूटर पर प्रविष्टि के समय सामान्य टेक्स्ट के रूप में इनकी एन्ट्री करवाई जाती है तथा बाद में प्रोग्राम बनाकर इन्हें विविध तबक्कों में विविध प्रकार से सर्चेबल डाटा बेस में लिया जाता है. वर्तमान में तीनों ही कोशों को प्रायोगिक तौर पर प्राथमिक रूप से डाटा बेस में लिया गया है. पंडितों की सुविधा के लिए एवं शब्दकोश हस्तप्रत सूचीकरण प्रोग्राम में कम्प्यूटर पर भी उपलब्ध किया गया है. ५. इन तीनों के अतिरिक्त हस्तप्रत लेखन वर्ष एवं कृति के रचनावर्ष को बतानेवाले सांकेतिक शब्दों हेतु संख्यावाचक शब्द कोश को भी कम्प्यूटर पर उपलब्ध कर दिया गया है. यह कोश काफी उपयोगी सिद्ध हो रहा है. ६. प्रायोगिक तौर पर पाइअसहमहण्णवो को www.Kobatirth.org/dic/dic.asp वेब साईट पर भी रखा गया है. ५. अक्षर (प्राचीन लिपि) प्रोजेक्ट : प्राचीन लिपि को जानने व समझनेवाले बहुत कम विद्वान ही रह गये हैं. सदियों की संचित हस्तप्रत, ताडपत्र, ताम्रपत्र, भोजपत्र, वस्त्रपटादि अपनी श्रुत धरोहर को सुरक्षित रखने, उनकी महत्ता, उपयोगिता से अगली पीढ़ी को परिचित कराने हेतु अक्षर प्रोजेक्ट का कार्य चल रहा है. विद्वानों एवं अध्येताओं को प्राचीन हस्तलिखित साहित्य को पढ़ने में सुगमता रहे इस हेतु वि. सं. ९०० से वि.सं. २००० तक देवनागरी-खासकर प्राचीन जैनदेवनागरी लिपि के प्रत्येक अक्षर/जोडाक्षर में प्रत्येक शतक में क्या-क्या परिवर्तन आए और उनके कितने वैकल्पिक स्वरूप मिलते हैं, उनका संकलन करते हुए उनके चित्रों का कम्प्यूटर पर एक डेटाबेस में संग्रह किया गया है. गत चार बर्षों से यह कार्य यथानुकूल एक तरह से जॉब-वर्क के रूप में पंडितों द्वारा किया जा रहा हैं. ला. द. विद्यामंदिर के श्री लक्ष्मणभाई भोजक का भी इसमें सहयोग रहा है. वास्तव में तो कोबा तीर्थ एवं ला. द. भारतीय संस्कृति विद्यामंदिर दोनों के संयुक्त प्रोजेक्ट के रूप में इसे देखा जा सकता है. यह कार्य दो भागों में विभाजित है. १. अक्षर संकलन : अप्रकाशित कृतियों के प्रकाशनार्थ लिपि विषयक दुरूहता को ध्यान में रखकर खासकर साधु-भगवन्त, शोधार्थियों हेतु इस कार्य के अन्तर्गत विक्रम संवत् की 10वीं से 20वीं सदी तक के विभिन्न हस्तलिखित ताडपत्रीय आदि शास्त्रग्रन्थों को स्केनिंग करके अपेक्षित मूलाक्षर, जोडाक्षर, मात्राएँ, विविध लाक्षणिक चिह्नों, विशेषताओं, अंकों/अक्षरांकों आदि का व्यापक पैमाने पर कम्प्यूटर प्रोग्राम के द्वारा तद्रूप में ही संचय किया गया है. कार्य अपने अन्तिम चरणों में है, मात्र थोडे से अवशिष्ट अक्षर लेने बाकी हैं एवं उन्हें अंतिमरूप से क्रमांकित करना बाकी है. चूंकि वर्तमान में हस्तप्रत सूचीकरण पर पूरा ध्यान केन्द्रित किया गया है अतः यह कार्य फिलहाल स्थगित है. २. परिचय लेखन : चयन का कार्य पूरा होते ही प्रत्येक अक्षर हेतु शतक अनुसार, उपलब्ध विकल्पों अनुसार एवं भ्रम होने के स्थानों पर परिचय लेखन का कार्य प्रारंभ होगा. इसके पूर्ण होने पर For Private and Personal Use Only
SR No.525261
Book TitleShrutsagar Ank 2003 09 011
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoj Jain, Balaji Ganorkar
PublisherShree Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2003
Total Pages44
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size1 MB
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