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श्रुतसागर, श्रावण २०५५
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श्रुत निधि की श्री जैन संघों में संरक्षित एवं संवर्धित करने की विश्व में अद्वितीय एवं उज्ज्वल गौरवपूर्ण मिसाल रही है. सम्राट कुमारपाल महाराज एवं वस्तुपाल व तेजपाल आदि के इस दिशा में कार्य एवं योगदान को इतिहास कभी भूला नहीं सकेगा. समस्त श्रीसंघ, जैन समाज एवं आर्य संस्कृति के लिए अत्यंत महत्त्वपूर्ण इस ज्ञानयज्ञ में शक्यतम ज्यादा से ज्यादा सहकार करने हेतु हम आप से आग्रह भरा विनम्र अनुरोध करते हैं. हमें आशा ही नहीं पूर्ण विश्वास है कि समस्त संघों एवं तीर्थों के ट्रस्टीगण श्रुतभक्ति के इस अद्वितीय कार्य में तहेदिल से सहकारी बन कर महत्तम धनराशि उपलब्ध करायेंगे.
सम्पर्क सूत्र :
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श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र कोबा, गांधीनगर ३८२००९
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धर्मस्य मूलं विनयः
पृष्ठ १६ का शेष ] सद्भावना मिल जाएगी तो प्रसन्नता स्वयं आ जाएगी.
यहां भी उस परमात्मा को सर्वप्रथम भावपूर्वक नमस्कार किया गया कि भगवन् तुझे नमस्कार करके मैं इस कार्य के अन्दर प्रवेश कर रहा हूं. इस लेखन कार्य के अन्दर, जो मुझे जगत् को देना है और जो कुछ जगत को दिया जाय, वह विशुद्ध हो, अमृत तुल्य हो. उसमें मनोविकार रूपी विष का प्रवेश न हो जाए. अहं की दुर्गन्ध इन शब्दों में न आ जाए. इसीलिए प्रथमतः नमस्कार की मंगल क्रिया सम्पादित की गयी ताकि जगत् का मार्ग-दर्शन करने की प्रक्रिया में कहीं मनोविकृति न हो. विशुद्ध अमृत तत्त्व इसके अन्दर दिया जाये जिसका पान करके आनन्द का अनुभव हो सके..
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बहुत सारे ऐसे विकृत लेख आपको मिलेंगे. बहुत गलत मार्गदर्शन मिल जाएंगे. पश्चिम सभ्यता की आंधी इतनी खतरनाक है कि वह साइक्लोन सारी दुनिया के अन्दर वायरस फैलाने वाला है. विषाक्त कीटाणु फैलाने वाला है. उनका एक ही दर्शन है, उनकी एक ही मान्यता "खाओ, पीओ, ऐश करो
कल तो तुम मर जाओगे." जहां परमात्मा के अस्तित्व में विश्वास नहीं है. स्वयं की आत्मा में आत्मविश्वास नहीं, जहां किसी प्रकार का जीवन में अनुशासन नहीं, जहां भोग का अतिरेक हो, वहां यही दशा होगी. मरना तो सबको है. ज्ञानियों ने कहा- मरना भी एक अपूर्व कला है. जिसका सारा ही जीवन धर्ममय होगा. विनम्रतापूर्वक जहां जीने की सुन्दर कला होगी. जहां विचारों का अपूर्व सौन्दर्य होगा, वहां उस आत्मा की मृत्यु भी जगत् को प्रेरणा देने वाली बनेगी, उसका सारा ही जीवन परोपकारमय होगा.
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पृष्ठ ११ का शेष ]
संघ सेवक श्री हेमंतभाई ..
समय के सम्यक् सदुपयोग में सहयोग मिलता है. श्री राणा दम्पति अपने पुत्र श्री मनन, पुत्रवधू अमीबेन, पौत्र चि. श्री हर्ष एवं पौत्री चि. देवांशी के साथ सुख से जीवन-यापन कर रहें हैं. श्रुतसागर की ओर से श्री भाई के स्वस्थ दीर्घायुष्य के लिए प्रार्थना...
पर्वाधिराज पर्व पर्युषण के पावन प्रसंग पर हमारा अन्तःकरण से .
मिच्छामि दुक्कडम्
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जो खमइ तस्स अस्थि आराहणा । जो न खमइ तस्स नत्थि आराहणा । ।
भगवान महावीर देव ने फरमाया है- हे गौतम! जो खमता है और जो खमाता है वह आराधक है जो नहीं खमता / खमाता वह विराधक है.