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श्रुत सागर, कार्तिक २०५३
लेकर जाये. उपाश्रय में भी गुरु महाराज के पास जाकर जो नहीं । गृह मंदिर : दिग्दर्शन ।
आता उस ज्ञान का अभ्यास करे.
जहाँ तक यह मनुष्य देह है तब तक सद्गृहस्थ को हमेशा देव उद्यमवन्त पुरुषों को चाहिये कि वे धर्म-अर्थ, काम और मोक्ष इन
पूजा और गुरुभक्ति करना उचित है. रोगादिक कारणों से ऐसा न हो तो चार पुरुषार्थों की प्राप्ति के लिये इष्ट देव का स्मरण करते हुए रात्रि |
दोष नहीं है. के अन्तिम प्रहर (ब्राह्ममुहूर्त) में शय्या से उठे.
भव्यात्मा को मन वचन और काया की अशुभ प्रवृत्ति का त्याग कर माता-पिता और वृद्ध पुरुषों को नमस्कार करने वालों को | मन, वचन और काया की शुद्धि पूर्वक पूजा करके सर्व सिद्धि दायक तीर्थयात्रा का फल मिलता है अतः उनको प्रतिदिन नमस्कार करें। अरिहंत भगवान का ध्यान करना चाहिये.
घर में प्रवेश द्वार से बायीं ओर सुंदर देव मंदिर करना चाहिये. । जिन प्रतिमा के अगर नाखून खंडित हो तो शत्रु से भय उत्पन्न गृह मंदिर की भूमि घर के समतल से डेढ़ हाथ ऊँची होनी चाहिये. | होता है. अंगुलि खंडित होने पर देशभङ्ग, बाहु खंडित होने पर बंधन,
पूजा करने वाले को पूर्व या उत्तर दिशा की ओर अभिमुख हो नासिका से कुल क्षय और चरण खंडित होने पर धन हानि होती है. बैठना चाहिये. दक्षिण, पश्चिम, अग्नि, नैऋत्य, वायव्य और ईशान यह
सिंहासन खंडित हो तो स्थान भंग, वाहन खंडित होने पर अपने छः दिशा पूजा के लिये त्याज्य हैं.
वाहन का नाश और परिकर के खंडित होने पर अपने नौकर चाकर का पश्चिम दिशा की ओर मुख करके पूजा करने से चौथी पीढी तक !
नाश होता है. संतति का विच्छेद होता है और दक्षिणाभिमुख करने से संतति वृद्धि प्रवचनांश नहीं होती है.
श्री-गणेश इसी प्रकार आग्नेयी दिशा अभिमुख पूजा करने से धन हानि,
___आचार्य श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी वायव्य दिशा में बांझपना और नैऋत दिशा में कुलक्षय होता है।
व्यवहार में किसी शुभ कार्य के प्रारम्भ में लोग जिनकी वन्दना ईशान दिशा में दारिद्रप्राप्ति होती है. पूजा करने वालों को प्रथम
करते है, उन गणेश का उदर बहुत बड़ा है. यह बताता है कि जो गण दो चरणांगुष्ठ फिर क्रमशः दोनों जानु दोनों हाथ, दोनों भुजा, मस्तक,
के स्वामी है, समुदाय के नेता हैं, देशनेता हैं, जिनको प्रमुख बनना है, भाल, कंठ, हृदय, नाभि स्थान पर पूजा करनी चाहिये.
उनका पेट दुनियां की बातों को हजम कर सके उतना विशाल सागर बिना केशर चन्दन के जिन प्रतिमा का पूजन कभी नहीं करना
जैसा होना चाहिए. चाहिये.
___ गणेश की आँखें छोटी हैं, जो बताती हैं कि जो गण का नेता होता नौ तिलक द्वारा जिन प्रतिमा का पूजन करना चाहिये और विधि |
है उसकी दृष्टि सूक्ष्म होनी चाहिए. हर एक बात को सूक्ष्म दृष्टि से के जानकार को प्रभात काल में प्रथम वासक्षेप पूजा करनी चाहिये.
देखना चाहिए इससे वस्तु में रहा हुआ मर्म समझ में आता है. आत्मा ____ मध्याहन काल में सुगंधि पुष्पों द्वारा और संध्या काल में धूप से |
| और परमात्मा का विचार करने के लिए सूक्ष्म दृष्टि की ही आवश्यकता है. पूजा करना उचित है, जिन प्रतिमा की दायीं ओर दीपक रखना
गणेश के कान बड़े हैं, अर्थात् जो देश का नेता अथवा कुटुम्ब का
मुखिया हो उसके कान बड़े होने चाहिए जिससे सबकी बातों को सुनकर चाहिये.
जो योग्य हो वही अपनाए. भगवान की बायीं ओर धूप तथा नैवेद्य सन्मुख रखें. ध्यान सन्मुख बैठकर करें तथा चैत्यवंदन दायीं ओर बैठकर करना चाहिये.
गणेश की नाक लम्बी है, इसका अर्थ यह हुआ कि उसे चारों ओर सज्जनों को जल, चन्दन, पुष्प, अक्षत, धूप-दीप, नैवेद्य और फल
सूंघ-सूंघ कर अच्छी वस्तु को अपना लेनी चाहिए. बड़े लोग अच्छाई को इन चीजों से पूजा करनी इष्ट है. श्वेत पुष्प शान्ति कारक, पीत पुष्प
| अपनाते है और निकम्मी बातों को छोड़ देते हैं. लाभ दायक, श्यामपुष्प पराभव कारक, रक्तपुष्प मांगलिक और पंचवर्णी
गणेश बड़े और उनका वाहन छोटा. चूहा छोटा होता है. इसी तरह पुष्प सिद्धिदायक है, पंचामृत पूजा अथवा शान्ति हो तो गड और भी बड़ आदमा का सहायक छोटा होना चाहिए, जो चारों ओर की का दीपक जलावें.
छोटी-छोटी बातों का भी ध्यान रखे. सद्गृहस्थ को पद्मासन करके नासिकाग्रभाग उपर दृष्टि स्थिर
दूसरा, बड़े आदमी को छोटे आदमी को भी सम्मान देना चाहिए, करके मौन रहकर, शुद्ध वस्त्र परिधान कर मुखकोश बांधकर, जिनेश्वर
| स्थान देना चाहिए. छोटे आदमी में भी बहुत से सद्गुण होते हैं. प्रभु की पूजा करनी चाहिये.
गणेश सद्गुणों के प्रतीक हैं. पूर्व दिशा में मुख करके स्नान, पश्चिम में दंतधावन, उत्तर में मुख
भगवान से केवल प्रकाश की मांग करके अपने मार्ग में आगे बढ़ते करके देव पूजा करनी चाहिये.
ही जाना चाहिए. राज्य का त्याग करने के बाद एक दिन भर्तृहरि जब धर्म, शोक, भय, आहार, निद्रा, काम, कलह और क्रोध यह आठों
गुदड़ी सी रहे थे, तब धागा सूई में से निकल गया, रात हो गई थी इस जितना चाहे उतना बढा-घटा सकते है अतः विवेक करें.
वजह से वे फिर सूई में धागा डाल नहीं सके, तब लक्ष्मीदेवी ने रेशम की सत्कार्य करने वाले सुकृतकर्मों से कभी पीछे नहीं हटते. (तृप्त |
गुदड़ी दी तो भर्तृहरि ने लेने से इन्कार कर दिया. जब देवी ने वरदान मांगने नहीं होते) अतः सुज्ञों को सुकार्य करने से कभी चूकना नहीं चाहिये.
| को कहा तो, भर्तृहरि ने सूई में धागा डालने की मांग की. सुख-संपत्तिवान गृहस्थों को सुंदर वस्त्र आभूषण पहन कर मंदिर
ल पाठको से नम्र निवेदन 6 व उपाश्रय आदि धर्म स्थानक में जाना चाहिये. ऐसा करने से पूर्वभव। यह अंक आपको कैसा लगा, हमें अवश्य लिखें. आपके सुझावों की का पुण्य लक्ष्मी के दर्शन से अन्य लोगों की नजर में आता है और खुद प्रतीक्षा है. आप अपनी अप्रकाशित रचना/लेख सुवाच्य अक्षरों में लिखकर नया पुण्य उपार्जित करता है,
हमें भेज सकते हैं. उचित लगने पर उसे प्रकाशित किया जायेगा. मंदिर जाते समय हाथ में फल-फूल अक्षतादि यत्किंचित भी हमेशा |
-संपादक
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