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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्रुत सागर, द्वितीय आषाढ २०५२ www.kobatirth.org सुभाषित चरिज्जधम्मं जिनदेलियं विदू । [२१-१२ उत्तराध्यायन सूत्र ] बुद्धिमान मनुष्य को चाहिए कि वह जिन द्वारा उपदिष्ट धर्म का आचरण करे. धम्मस्स विओ मूलं । [९-२-२ दशवैकालिक सूत्र ] धर्म का मूल विनय है. अप्पणट्ठा परठावा, कोहा वा जइ वा भया। हिंसगं न मुसं बूया, नोवि अन्नं वयावए ।। [६-११ दशकालिक सूत्र ] निर्द्वन्य अपने स्वार्थ के लिये या दूसरों के लिए कोच से, या भव से किसी प्रसंग पर दूसरों को पीड़ा पहुँचाने वाला सत्य या असत्य वचन न तो स्वयं बोले न दूसरों से बुलवाये. 1 न लवेज्न पुट्ठो सावज्जं न निरट्ठे न मम्मयं । अप्पणट्ठा परट्ठा वा उभयस्स तरेण वा ।। [१-२५ उत्तराध्ययन सूत्र ] किसी के पूछने पर भी अपने स्वार्थ के लिए अथवा दूसरों के लिए पाप युक्त निरर्थक वचन न बोले और मर्मभेदक वचन भी नहीं बोलना चाहिए. बालं सम्मइ सासंतो, गलियस्सं व वाहए। [१-३७ उत्तराध्ययन सूत्र ] जैसे दुष्ट घोड़े को चलाते हुए उसका वाहक खिन्न होता है, वैसे ही दुर्बुद्धिअविनीत शिष्य को शिक्षा देता हुआ गुरु खिन्नता का अनुभव करता है. अणुमा पि मेहावी, मायामो विवज्जए । [ ५-२-४९ दशवालिक सूच] आत्मार्थी साधक अणुमात्र भी माया मृषा का सेवन न करे. अणमिक्कतं च वर्ष संपेहाए, खर्ग जागाहि पंडिए । [१-२-१ आचारांग सूत्र ] सूत्र हे पंडित साधक! जीवन के जो क्षण बीत गये सो बीत गये. अवशेष जीवन को ही लक्ष्य में रखते हुए प्राप्त अवसर का तू सदुपयोग कर. मुलाओ बंधप्यभवो दुमल्स, संघात पच्छा समुवेन्ति साहा । साहप्पसाहा विरुहन्ति साहा, तओ सि पुष्पं च फलं रसो य।। [९-२-१ दशवैकालिक सूत्र ] | वृक्ष के मूल से स्कन्ध उत्पन्न होता है, स्कन्ध के पश्चात् शाखाएँ, और शाखाओं में से प्रशाखाएँ निकलती हैं. इसके पश्चात् फूल, फल और रस उत्पन्न होता है. एवं धम्मस्स विणओ, मूलं परमो से मोक्खो जेण किलिं, सयं, सिग्धं, निस्सेसं चाभिगच्छई ।। [ ९-२-२ दशवेकालिक सूत्र ] इसी प्रकार धर्म रुपी वृक्ष का मूल विनय है, और उसका अन्तिम फल मोक्ष है. विनय से मनुष्य को कीर्ति, प्रशंसा और श्रुतज्ञान आदि समस्त इष्ट तत्वों की प्राप्ति होती है, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ग्रंथावलोकन 'गुरुवाणी' वह जीवन मूल्यों को आलोकित करनेवाला उत्तम संस्कार पोषक एक पठनीय ग्रंथ है. जीवन में सदाचार-नैतिकता मार्गानुसारिता श्रावक तथा साधु धर्म का पालन कैसे कर सकते है, इन सत्कर्मों से जीवन में क्या लाभ होता है यह सब खूब रोचक शैली में प्रवचनकार आचार्यश्री पद्मसागरसूरीश्वरजी म. सा. ने प्रवचनों के माध्यम से समझाया है. रुवाणी ग्रन्थ .. श्री ०५३ जीवन को सुख-समृद्धिमय बनाना हो, संसार की उपाधियों से त्रस्त हुए हो और शान्ति की चाहना रखते हो तो इस ग्रंथ का अध्ययन नितान्त आवश्यक प्रतीत होगा. सामान्य जीवन से लेकर आध्यात्मिकता के उच्च शिखर पर आरूढ होने तक की असर जीवन में समरसता पैदा करके रहेगी ऐसा कह सकते है. क्रमबद्ध पद्धति इस प्रावचनिक ग्रंथ में मिलती है. सुग्राह्य और सरल शब्दों की जादुई इस 'गुरुवाणी' ग्रंथ का विमोचन समारोह अभी-अभी १९ मई को नेपाल की राजधानी काठमाण्डौ में सम्पन्न हुआ है. नेपाल के प्रधान मन्त्री शेरवहादुर श्रीमान् देउवाजी के करकमलों से विमोचन होना भी इस प्रत्यरत्न की महिमा है. नेपाल के महाराजा श्री वीर विक्रम वीरेन्द्र सिंह शाहदेव को भी यह ग्रंथ जब वे पूज्य आचार्यश्री [शेष पृष्ठ ८ पर For Private and Personal Use Only उद्गार जैन दर्शन यथार्थ में जीवन का दर्शन है. इसे अनुभूति में लाने हेतु जो साहित्य का अद्भुत और अपूर्व प्रयास किया गया है उससे वर्तमान ही नहीं भावी पीढ़ियां भी लाभान्वित होगी और इसका उपकार मानेगी. सुन्दरलाल पटवा, भूतपूर्व मुख्य मंत्री, मध्य प्रदेश This is the best provided and most impressive institution for the practice and scholarl study of Jain religion that I have seen. The trustees and employees are to be congratulated on the impeccable presentation and upkeep of the buildings. Every thing is in place for the furtherance of Jain scholarship. Dr. Will Johnson, University of Wales, U.K. cs पाठकों से नम्र निवेदन 80 यह अंक आपको कैसा लगा, हमें अवश्य लिखें. आपके सुझावों की हमें प्रतीक्षा है. आप अपनी अप्रकाशित रचना/लेख सुवाच्य अक्षरों में लिखकर / टंकित कर हमें भेज सकते हैं. अपनी रचना/ लेखों के साथ उचित मूल्य का टिकट लगा लिफाफा अवश्य भेजें अन्यथा हम अस्वीकृति की दशा में रचना वापस नहीं भेज सकेंगे. श्रुतसागर, आचार्यश्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र, कोबा, गांधीनगर ३८२००९.
SR No.525254
Book TitleShrutsagar Ank 1996 07 004
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoj Jain, Balaji Ganorkar
PublisherShree Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year1996
Total Pages8
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size1 MB
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