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जैन परम्परा में वर्षायोग का महत्त्व : 27 वर्षायोग का हेतु :
यम संयम रक्षार्थ, प्रजा बोधन हेतवे।
श्रुत ध्यान विकासार्थ, वर्षयोग विधीयते।।। साधुजन वर्षायोग करते हैं यह आगम का विधान है। परन्तु वर्षायोग क्यों करते हैं? वर्षायोग करने का हेतु, कारण क्या है? वर्षायोग का प्रयोजन क्या है? साधुजन वर्षायोग स्थापना यम, संयम की रक्षा के लिए करते हैं। संयम को निर्दोष रखने के लिए वर्षायोग करते हैं। वर्षायोग में साधुजन चार मास तक एक ही स्थान पर रहते हैं। एक ही स्थान पर रहने का हेतु यह है कि वर्षायोग के समय वर्षा बहत होती है। वर्षा के करण असंख्य जाति के अति सूक्ष्म त्रस जीव उत्पन्न होते हैं, जो आँखों से देखने में नहीं आते हैं। ऐसे समय गमनागमन करने से उन लघुकाय जीवों की विराधना होगी, जिससे संयम की रक्षा नहीं हो सकेगी। अत: संयम के रक्षा हेतु वर्षायोग का विधान है। आचार्य श्री सुनीलसागर जी महाराज ने प्राकृत भाषा में 'चादुम्मासो य आगदो' नाम से एक कविता लिखी है जिसकी एक गाथा इस प्रकार है. मुणी चागी य कुव्वंति, बरिसाए सुसाहणं।
जीवाणं रकखणं सेलु चादुमासो य आगदो।।१४ जिस वर्षाकाल में मुनि व त्यागीगण विशेष रूप से श्रेष्ठ साधना करते हैं, जीवों की श्रेष्ठ रक्षा करते हैं, ऐसा यह चातुर्मास का काल आ गया।। दूसरा हेतु है प्रजा को संबोधन हेतु, तीर्थंकर दिव्य देशना भव्य प्राणियों तक पहुँचाने के लिए एवं धर्म प्रभावना के लिए। तीसरा हेतु है श्रुत वर्धन के लिए- एक स्थान पर रुकने से ज्ञान की वृद्धि होती है, ज्ञान बढ़ता है। स्वाध्याय अधिक मात्रा में होता है। वर्षायोग का चौथा हेत है ध्यान के लिए- इससे अधिक मात्रा में समय ज्ञान, ध्यान आदि के लिए मिल जाता है। ज्ञान, ध्यान के विकास के लिए वर्षायोग को विधिवत धारण करते हैं। चातुर्मास काल में साधुजनों को चार माह तक एक ही स्थान पर रहने से ध्यान, चिन्तन व स्वाध्याय का अधिक अवसर मिलता है, उनकी त्याग तपस्या भी सर्वाधिक होती है तथा श्रावकजन को भी साधुजनों की सेवा, सुश्रुषा व आहारदान देने का