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जैन परम्परा में श्रावक प्रतिमा की अवधारणा
डॉ० कुमार शिवशंकर कोशकारों ने प्रतिमा के मूर्ति, प्रतिकृति, प्रतिबिम्ब, बिम्ब, छाया, प्रतिच्छाया आदि अनेक अर्थ किये हैं, किन्तु जैन ग्रन्थों में प्रतिमा का अर्थ है- प्रतिज्ञा- विशेष', व्रतविशेष, तप-विशेष, साधना पद्धति। नैतिक विकास के हर चरण पर साधक द्वारा प्रकट किया हुआ दृढ़ निश्चय ही प्रतिमा अर्थात् श्रेणी कहा जाता है। श्रावक प्रतिमाएँ वस्तुतः गृही-जीवन में की जाने वाली साधना की विकासोन्मुख श्रेणियाँ (भूमिकाएँ) हैं, जिन पर क्रमश: चढ़ता हुआ साधक अपनी आध्यात्मिक प्रगति कर जीवन के परमादर्श ‘स्वस्वरूप' को प्राप्त कर लेता है।' श्वेताम्बर और दिगम्बर दोनों परम्पराओं के ग्रन्थों में उपासक की एकादश प्रतिमाओं का वर्णन आया है। क्रम व नामों में थोड़े अन्तर हैं, जो निम्न प्रकार द्रष्टव्य हैं :श्वेताम्बर परम्परानुसार :- १. दर्शन, २. व्रत, ३. सामायिक, ४. प्रौषध, ५. नियम, ६.ब्रह्मचर्य, ७. सचित्तत्याग, ८. आरम्भत्याग, ९. प्रेष्य-परित्याग, १०. उद्दिष्टभक्तत्याग तथा ११. श्रमणभूत। दिगम्बर मतानुसार :- १. दर्शन, २. व्रत, ३. सामायिक, ४. प्रौषध, ५. सचित्त त्याग, ६. रात्रि भोजन एवं दिवामैथुन विरति, ७. ब्रह्मचर्य, ८. आरम्भत्याग, ९. परिग्रहत्याग, १०. अनुमति त्याग और ११. उद्दिष्ट त्याग। इनके क्रम और संख्या के सम्बन्ध में दिगम्बर आचार्यों में भी मतभेद है। स्वामी कार्तिकेय ने इनकी संख्या १२ मानी है। इसी प्रकार आचार्य सोमेदव ने दिवा-मैथुनविरति के स्थान पर रात्रिभोजनविरति प्रतिमा का विधान किया है। डॉ० सारगमल जैन ने दोनों परम्पराओं की सूचियों पर विचार करते हुए लिखा है कि श्वेताम्बर और दिगम्बर सूचियों में प्रथम चार नामों एवं उनके क्रम में साम्य है। श्वेताम्बर परम्परा में सचित्त त्याग का स्थान सातवाँ है, जबकि दिगम्बराम्नाय में उनका स्थान पाँचवाँ है। दिगम्बराम्नाय में ब्रह्मचर्य का स्थान सातवाँ है, जबकि श्वेताम्बराम्नाय में ब्रह्मचर्य का स्थान छठा है। श्वेताम्बर परम्परा में परिग्रह त्याग की स्वतंत्र भूमिका नहीं है, जबकि वह दिगम्बर परम्परा में ९वें स्थान पर है। शेष दो प्रेष्यत्याग और उद्दिष्टत्याग दिगम्बर परम्परा में अनुमतित्याग और उद्दिष्टत्याग के नाम से अभिहित हैं, लेकिन श्वेताम्बर परम्परा में परिग्रह-त्याग की स्वतंत्र भूमिका नहीं मानने के कारण ११ की संख्या में जो एक की कमी होती है, उसकी पूर्ति श्रमणभूत नामक प्रतिमा