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________________ हिन्दी अनुवाद : यह बात सुनकर सभी सखियाँ हाथ से ताली बजाकर हंसती हुई बोलीं, हे श्रीमती ! यह सत्य है, आपका निर्णय योग्य ही है। गाहा : अह लद्ध - चेयणाए विन्नाया हंति जाय- लज्जाए । आगारं विणिगूहिय सकोवमेवं मए भणियं ।। २३३।। संस्कृत छाया : अथ लब्धचेतनया विज्ञाताऽहमिति जातलज्जया । आकारं विनिगूह्य सकोपमेवं मया भणितम् ।। २३३।। गुजराती अनुवाद : तेटला मां प्राप्त थयेली चेतनावाळी रवी में तेमना उपहास नुं कारण जाण्युं, उत्पन्न- थयेली लज्जावाळी में आकार ने छुपावी कोप सहित कां. हिन्दी अनुवाद : इतने में जैसे मुझे चेतना आ गई हो, उसके उपहास का कारण जानकर, लज्जावाली मैं आकार को छुपाते हुए क्रोध में बोली। गाहा : हंभो ! अलिय - पलाविणि! दंसणमित्तंपि नत्थि एएण । कत्तो आसन्नत्तं जेण कया हं रई तुमए ? ।। २३४।। संस्कृत छाया : हं भो ! अलीकप्रलापिनि ! दर्शनमात्रमपि नास्त्येतेन । कुत आसन्नत्वं येन कृताऽहं रतिस्त्वया ? ।। २३४।। गुजराती अनुवाद : हे असत्य बोलनारी सखी! एनुं दर्शन मात्र पण मने नथी थयुं, तो नुं समीपपणुं क्यां थी ? के जेथी रति तरीके ते कल्पना करी? हिन्दी अनुवाद : हे असत्य बोलने वाली सखी! इनका दर्शन मात्र भी मुझे नहीं हुआ है तो इनके समीप कहाँ से गई कि जिससे तुमने रति के रूप में कल्पना की।
SR No.525096
Book TitleSramana 2016 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey, Rahulkumar Singh, Omprakash Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2016
Total Pages186
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size14 MB
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