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10 : श्रमण, वर्ष 67, अंक 2, अप्रैल-जून, 2016 मुहिलोयं करेइ"। बारह व्रतों का दीर्घकाल तक सुविशुद्ध पालन, ग्यारह प्रतिमाओं के क्रमश: यथागम निर्वहण के पश्चात् ही लोच की भूमिका बन सकती है। इतनी स्पष्टता के बावजूद आज के युग में कुछ सम्प्रदायों ने श्रावकों के लिए लोच की परम्परा डाली है। यह सरासर आगमेतर प्रथा का प्रचलन लगता है। जो श्रावक अंधाधुंध व्यापार में संलग्न हैं, जिन्हें ब्रह्मचर्य का नियम नहीं, बारह व्रत भी गृहीत नहीं हैं, नैतिकता के विरुद्ध अन्यायपूर्वक कमाई करते हैं, नियमित रूप से सामायिक संवर भी नहीं करते, वे यदि ग्यारहवीं प्रतिमा के पालनकर्ता के वैकल्पिक नियम केशलोच' को अपनाते हैं तो लगता है - राजाओं का मुकुट किसी दीन हीन दरिद्र के पैरों पर बांधा जा रहा है। जिन शासन के प्रतीक के साथ खिलवाड़ की जा रही है। यह सत्य है कि लोच बहुत बड़ी साधना है, जो इसका सेवन करेगा वह आत्मकल्याण के मार्ग पर अग्रसर होगा। परन्तु क्या इस मुकाम पर पहुंचने से पहले जिन मोड़ोंमरहलों को पार करना आवश्यक होता है, उन्हें बिना छुए अकेला लोच कल्याणकारी हो सकता है? अधुनातन साधु समाज में कुछ साधु-साध्वी महाराज एकांकी विचरते हैं और वे फरमाते हैं कि “एकांकी विचरना तो बहुत बड़ी साधना है।" साधु महाराज के तीन मनोरथों में से एक मनोरथ है। यह तो निर्भरता है सहाय प्रत्याख्यान है। परन्तु जो संघ आगमवादी हैं क्या उनके तर्कों से सहमत होगें? क्या अपने संघ के मुनियों को, साध्वियों को प्रेरित करेंगे कि आगे बढ़ो, अकेले रहो, नि:संगता बढ़ेगी और अधिकाधिक कर्म-निर्जरा होगी। संघ के झंझटों से मुक्त हो जाओगे, नग्नत्व अपना लो, विशुद्ध चारित्राराधना के अधिकारी बनोगे और विशिष्ट निर्जरा कारक भी। लेकिन नहीं, क्योंकि उन्हें ज्ञात है कि यह प्ररूपणा और प्रोत्साहन आगमेतर हो जाएगा। नग्नत्व का मण्डन आचारांग में है, एकांकी विचरणा की प्ररेणा है। पर उस स्थिति पर जाने के लिए साधक को और शर्ते भी तो पूरी करनी होती हैं। पूर्वो का ज्ञान हो, भिक्षा काल सुनिश्चित हो, एक दो रात से अधिक कहीं निवास न हो, वृक्षों के नीचे या बागों में रहता हो, सोने के लिए सूखी घास भी न लेता हो, आग लग जाए तो अन्दर से बाहर, बाहर से अन्दर न जाने की प्रतिज्ञा रखता हो, कांटा, कंकर चुभने पर निकालने का प्रयास न हो, आंखों में पड़े तिनके को भी न निकालता हो जहाँ सूर्यास्त हो जाए, कितना ही भयानक स्थान हो वहां से एक कदम भी आगे पीछे नहीं जाता हो, हाथी, घोड़ा, बैल का खतरा देखकर रास्ता न बदलता हो, शरीर के आराम वास्ते धूप से छाया, छाया से धूप में न जाता हो इत्यादि अनेक शर्ते पूरी