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________________ रमणीयण-वर-वज्जिर-नेउर-झंकार-रुद्ध-सुइ-विवरं । विवरीय-रय-वियक्खण-विलासिणी-लोय-पडिपुन्नं ।।१७४।। पुन्नुक्कड-जण-वासं इन्भ-सहस्सोवसोहियं विउलं । विउल-रसा-यल-परिगय-परिहा-पायार-सोहिल्लं ।।१७५।। सोहिल्ल-तिय-चउक्कं उक्कड-दप्पिट्ठ-जोह-सय-कलियं । नामेण कुसग्गपुरं नयरं दिय-लोय-सारिच्छं ।।१७६।। संस्कृत छाया : अस्ति पृथिवीप्रकाशं निरर्गलोदप्रवेगवत्तुरङ्गम् । वेगवत्तुरङ्गखरखुरोत्खातखेहा (धूली)ऽऽकीर्णक्षपथम् ।। १७१।। ऋक्षपथपवनकम्पवत्ध्वजपटराजमानभूरिसाणूरं (देवगृहम्) । साणूरगभीरवदितृतूर्यरवोत्फुण्ण(पूर्ण)दिक्चक्रम् ।। १७२।। दिक्चक्रगेयसार्थवाहसार्थक्रियमाणवर्यवाणिज्यम् । वाणिज्यकलाप्राप्तार्थलट्ठ(लष्ट)वाणिजकरमणीयम् ।।१७३।। रमणीजनवरवदितृनूपुरझङ्काररुद्धश्रुतिविवरम् । विपरीतरतविचक्षणविलासिनीलोकप्रतिपूर्णम् ।।१७४।। पुण्योत्कटजनवासं इभ्यसहस्रोपशोभितं विपुलम् । विपुलरसातलपरिगतपरिखाप्राकारशोभावद् ।। १७५।। शोभावत्रिकचतुष्कं, उत्कटदर्पिष्टयोधशतकलितम् । नाम्ना कुशाग्रपुर नगरं देवलोकसक्षम् ।।१७६ ।। षभिः कुलकम् गुजराती अनुवाद : कुशायपुर नगर पृथ्वी ने विषे प्रकाशमान, निरंतर उत्तम वेगवाळा अन्धोथी युक्त, वेगवाळा घोडानी प्रचंड खरी थी उड़ती रजकणो थी व्याप्त कर्यों छे आकाश मार्ग जेणे... गगन मार्ग मां पवन थी डोलती ध्वजपटथी शोधता देवालय जेन्मां छे, देवालयो मां गंभीर वागतां वाजीबो ना नाद बड़े पूराया छे दिशाना भाग जेन्मा... दरेक दिशाओ मां धनाढ्य सार्थवाह ना समूह बड़े ज्यां व्यापार कराय छे, वाणिज्य कला मां कुशल स्वां श्रेष्ठ वणिकजनो थी विभूषित, रमणी जनो ना वागता नूपुर ना झंकार ना नाद थी कान ने बधिर करतुं, विपरीत स्वी मैथुन क्रीडा मां निपुण स्वी विलासीनी लोक वड़े परिपूर्ण... पुण्यनिष्ठ
SR No.525096
Book TitleSramana 2016 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey, Rahulkumar Singh, Omprakash Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2016
Total Pages186
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size14 MB
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