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निश्नुतो विस्मयजनको, बधिरितासन्नसत्त्वश्रुतिविवरः ।
मुखरित-दिग्विभागो, गुरुकखटत्कारसंशब्दः ।।११२।।तिसृभिः कुलकम् गुजराती अनुवाद :
परंतु आजे रात्रिना अंते उद्याननी मध्ये विकसित वृक्षोना समूहने आम तेम जोतो हतो तेवामां एक दिशामां बहु वेलडीओधी छवाई गयेल वृक्षनी झाडीमां, जेणे हंसना समूहने बास पमाडयो छे पक्षीओना समूहने उडाडी दीधो छे. नजीकमा रहेला प्राणीओना कानने बहेरा बनावी दीधा छे. दिशाना विधागने जेणे वाचाळ बनावी दीयो छे तेवो मोटो धबकारनो शब्द में साधळयो. विधिः कुलकम, हिन्दी अनुवाद :
किन्तु आज रात्रि के अन्त में उद्यान के मध्य में विकसित वृक्षों के समूह को मैं इधर-उधर देख रहा था तभी एक दिशा में बहुत सी लताओं से आच्छादित हो गए एक वृक्ष की झाड़ी से, जिससे हंसों का समूह भी डर गया हो, जिसने पक्षियों के समूह को उड़ा दिया था तथा जो नजदीक पड़े प्राणियों को बहरा बना दिया था, दिशा के खण्डों को जिसने वाचाल बना दिया था, ऐसी बड़ी ठोस आवाज मैंने सुनी। गाहा :
सोऊण य तं सई विम्हिय-उप्फुल्ल-लोयणेण मए ।
पुलइय तत्तोहुत्तं चिंतियमव्वो! किमेयंति ।।११३।। संस्कृत छाया :
श्रुत्वा च तच्छब्दं विस्मितोत्फुल्ललोचनेन मया ।
दृष्ट्वा तदभिमुखं (तत्तोहुत्त) चिन्तितं अहो ! किमेतदिति ।।११३।। गुजराती अनुवाद :
ते शब्द सांभळीने अरे! आ शुं थयुं? स प्रमाणे विस्मयथी पहोळा थयेला नेत्रवाळा में ते तरफ जोयुं अने विचार्यु. हिन्दी अनुवाद :
- वह आवाज सुनकर अरे! यह क्या हुआ? इस प्रकार विस्मय से विस्फारित नेत्रों वाला मैं उस तरफ देखा और विचार किया।