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________________ संस्कृत छाया : अथ भणितं सुरथेन भगवन् ! व्रजामि निजस्थाने । यत्किञ्चिन्मयेदानी कर्तव्यं तच्चादिशत ।।५३।। गुजराती अनुवाद :___त्यारपछी सुरथे कहयुं 'हे भगवन्! मारा स्थानमां जउं छु हवे जे कंई पण मारे हालमा करवानुं होय तेनी आज्ञा फरमावो. हिन्दी अनुवाद :___तब सुरथ ने कहा हे भगवन्! मैं अपने स्थान पर जा रहा हूँ। इसलिए जो कुछ भी मुझसे करवाना हो, उसकी आज्ञा दें। गाहा : अह कुलवइणा भणियं गुरु-जण-पूयाइ-धम्म-करणम्मि । जह-सत्तीइ पयट्टस सरणागय-वच्छलत्ते य ।। ५४।। संस्कृत छाया : अथ कुलपतिना भणितं गुरुजनपूजादिधर्मकरणे । यथाशक्त्या प्रवर्तस्व शरणागतवत्सलत्वे च ।।५४।। गुजराती अनुवाद : त्यारे कुलपतिस कहयुं- 'गुरुजननी पूजा विगेरे धर्मकार्यमां तथा शरणागतने विषे वात्सल्य राखवा माटे यथाशक्ति प्रयत्न करवो. हिन्दी अनुवाद : तब कुलपति ने कहा, गुरुजनों की पूजा आदि धर्मकार्य में तथा जो शरणागत हुआ हो उसके प्रति वात्सल्य रखने का यथाशक्ति प्रयास करो। गाहा :. अन्नं च भद्द! निसुणसु एसा रन्नो य अमरकेउस्स । देवी गय-अवहरिया अच्छई कमलावई नाम ।।५५।। संस्कृत छाया : अन्यच्च भद्र ! निशृणु एषा राजश्चाऽमरकेतोः । देवी गजापहृताऽऽस्ते कमलावती नाम्नी ।।५५।।
SR No.525096
Book TitleSramana 2016 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey, Rahulkumar Singh, Omprakash Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2016
Total Pages186
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size14 MB
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