SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 9
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 2 : श्रमण, वर्ष 67, अंक 1, जनवरी-मार्च, 2016 रहते हैं। सन्तुलित वातावरण में प्रत्येक घटक लगभग एक निश्चित मात्रा एवं अनुपात में उपस्थित रहता है। कभी-कभी वातावरण में एक अथवा अनेक घटकों की मात्रा अधिक बढ़ जाती है अथवा वातावरण में अन्य हानिकारक घटकों का प्रवाह हो जाता है जिससे वातावरण प्रदूषित हो जाता है जो कि किसी न किसी रूप में जीवधारियों के लिए हानिकारक सिद्ध होता है, यही प्रदूषण कहलाता है। प्रदूषण वायु, जल एवं स्थल की भौतिक, रासायनिक और जैविक विशेषताओं का वह अवांछनीय परिवर्तन है, जो मनुष्य एवं अन्य जन्तुओं, पौधों, भवनों तथा जीवधारियों के लिए आवश्यक पदार्थों और हमारी विभिन्न वस्तुओं को किसी न किसी रूप में हानि पहुँचाता है। पृथ्वी पर जीवन का इतिहास लगभग चार बिलियन वर्षों का है और डेढ़ करोड़ वर्ष पूर्व का मानव का इतिहास है। किन्तु मानव के इतिहास में मानव की आज जैसी दयनीय स्थिति कभी नहीं थी। 'सुजलाम् सुफलाम् मलयज-शीतलाम् शस्य श्यामलाम' पृथ्वी के बड़े ही मनोरम पर्यावरण में मानव ने आँखें खोली होंगी जहाँ सर्वत्र सन्तुलन रहा होगा। किन्तु आज मानव की घोर भौतिकवादी प्रवृत्ति, तीव्र औद्योगीकरण, आधुनिकीकरण, पाश्चात्य सभ्यता का अनुकरण, प्राकृतिक संसाधनों का क्रूरतापूर्वक दोहन, जनसंख्या वृद्धि तथा उपभोक्तावादी संस्कृति के विकास ने प्रकृति की मूल संरचना और व्यवस्था में असन्तुलन पैदा कर दिया है। परिणामत: ‘पारिस्थितिकी असन्तुलन' एक वैश्विक संकट बन गया है। आज समूची मानवता विनाश के कगार पर खड़ी है और उसका कारण है हमारे द्वारा प्रदत्त पर्यावरणीय संकट। वर्तमान में जो पर्यावरणीय समस्यायें हमारे सामने हैं उनमें ग्लोबल वार्मिग, ग्रीन हाउस प्रभाव, ओजोन पर्त का विघटन, अम्लीय वर्षा, बढ़ती जनसंख्या प्रदूषण आदि प्रमुख हैं। आज पृथ्वी पर मानव-जाति को सबसे ज्यादा खतरा तापमान में हो रही वृद्धि से है जिसका मुख्य कारण है 'ग्रीन-हाउस गैसों की बढ़ती मात्रा और 'ओजोन' (पृथ्वी के वायुमण्डलीय परत के ठीक ऊपर समताप मण्डल है जिसके बीचों-बीच ओजोन गैस की एक २५ किमी लम्बी परत मौजूद रहती है जो सूर्य से आने वाली घातक पराबैगनी विकिरण को पृथ्वी तक पहुँचने से रोकती है) की टूटती या झीनी होती परत। दोनों ही समस्याओं का कारण औद्योगिक विकास और विलासी जीवन-शैली के उपकरण जैसे- मोटर-गाड़ियां, एयर कंडीशनिंग, प्लास्टिक उद्योगों, इलेक्ट्रॉनिक उद्योगों में प्रयुक्त रसायन, जीवाश्म ईंधन का व्यापक प्रयोग है। वैज्ञानिक आकड़ों से यह संकेत मिलता है कि ओजोन परत लगभग पैंतीस प्रतिशत झीनी हो गयी है। मौजूदा प्रवृत्तियों के मुताबिक ग्लोबल वार्मिंग जारी रही तो जलवायु परिवर्तन के खतरनाक व घातक परिणाम सामने आयेंगे। वैश्विक तपन का कारण वायुमण्डल
SR No.525095
Book TitleSramana 2016 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey, Rahulkumar Singh, Omprakash Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2016
Total Pages114
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy