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________________ 46 : श्रमण, वर्ष 67, अंक 1, जनवरी-मार्च, 2016 हैं- “यद्देवाः यतयः भुवानान्यपिन्वत्७'अर्थात् -जिस प्रकार यति देवों ने लोकों को (रश्मियों से या वृष्टि से) आपूरित कर दिया। यहाँ यति देववाची हैं। ऋग्वेद में मित्र वरुण के साथ सम्बद्ध भृगुओं को भी यति कहा गया है। ऋग्वेद के दो स्थलों पर इसको प्रयोग किया गया है; जहाँ यति का सम्बन्ध भृगु से स्थापित किया गया है - 'यतिभ्यो भृगवे धाने हिते"; तथा ऋचा में भृगुओं को स्पष्टत: यति कहा गया है -'यत यस्त्वा भृगवो ये च तुष्टुवुः। ५९अर्थात् - हे इन्द्र! भृगु यतियों ने तुमको सन्तुष्ट किया।" भृगुओं का वरुण से सम्बन्ध सुविख्यात है। शतपथ ब्राह्मण६० में भृगु को वरुण का पुत्र ही कहा गया- 'भृगुर्वे वारुणिः।' भृगु और यति का यह सम्बन्ध मित्रवरुण के उपासकों के रूप से यतियों की सम्भावना को पुष्ट करता है। इसके साथ ही साथ इस परम्परा में यतियों को आंगिरस कहा गया है। सायणः१ अनेक प्रसंगों में कहते हैं -‘आङ्गिरसा: यतयः।' किन्तु कौषीतकी परम्परा में अरुमघों को यति कहा गया है। तैत्तिरीय संहिता६२ पर वेदार्थ प्रकाश की टीका पर माधवाचार्य एक कौषीतकी श्रुति का उद्धरण देते हैं - "अतएव कौषीतिकन इन्द्र वाक्यमेत दामनन्ति....त्रिशीर्षाणां त्वाष्ट्रमहं अहनं अरुन्मुखान् यतीन सालावृकेभ्यः प्रायच्छम्।” यहां यह तथ्य विशेष रूप से द्रष्टव्य है कि विश्वरूप त्वाष्ट, यति और अरुर्मघों को पुरोहितों और असुर से सम्बन्धित माना गया। सायण ने ऐतरेय ब्राह्मण के उपर्युक्त उद्धरण की व्याख्या में यतियों को 'यतिवेषधारान् असुरान् और अरुमघों को ब्राह्मण वेषन असुरान् कहा है। अरुन्मघ वे भारतेरानी देवोपासक थे जो भिषक् थे और विशेषकर रक्त-स्राव की चिकित्सा करते थे। निष्कर्षत: यह स्पष्ट है कि मुनि परम्परा प्राक्-ऋग्वेदीय भारतीय आर्यों से सम्बद्ध थी। इसकी परिणति ब्राह्मण-भिक्षु-परिव्राजक वर्ग में हुई। यति परम्परा भारतेरानी युग से प्रारम्भ होकर क्रमशः क्षीण होती गयी, केवल ‘यति' शब्द के अवशेष को छोड़कर जो बाद में परिव्राजकों और श्रमणों के अर्थ में प्रयुक्त होने लगा। इन दोनों परम्पराओं में श्रमण संस्कृति की कतिपय लाक्षणिक विशेषता प्राप्त होती है। इसी शृंखला में ब्राह्मण-परिव्राजकों के प्राचीन इतिवृत्त का अवलोकन करना श्रेयस्कर है। साधारणत: चतुर्दिक भ्रमण करने वाले व्यक्ति को 'परित: चरति यः' परिव्राजक कहते हैं। पालि साहित्य में परिव्राजक का संकुचित अर्थ किया गया है-'आगारस्मा
SR No.525095
Book TitleSramana 2016 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey, Rahulkumar Singh, Omprakash Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2016
Total Pages114
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size14 MB
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