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42 : श्रमण, वर्ष 67, अंक 1, जनवरी-मार्च, 2016 'वातस्य युक्तान्सुयुजश्चिदश्वान्कविश्चिदेषो अजगनवस्यु:३९ अर्थात् अवस्यु नाप्प प्राज्ञ ने वात के अच्छी तरह जुते हुए घोड़ों को प्राप्त किया। यह वातरशन प्रकार की योग साधना केशी तत्त्व से संयुक्त है। केशी का भले ही अभिधेय अर्थ प्रलम्ब केश युक्त पुरुष हो, इस प्रसंग में यास्क, शौनक, सायण आदि द्वारा दिया गया प्रतीकार्थ ही सार्थक एवं सारगर्भित है। निरुक्त का निर्वचन है- केशी केशा: रश्मयः तैस्तद्वान् भवति। पुन: आगे कहा गया है- ज्योतिषी केशिनी उच्यते।४१ . वृहदेवता की भी यही उक्ति है- प्रकाशं किरणैकुर्वन्स्तेनैनं केशिनं विदुः।४२ पुनः यह सूक्त स्वयं व्याख्या करता है केशदंज्योतिरुच्यये' अर्थात् यह मण्डलस्थ ज्योति प्रकाश है उसको केशी कहते हैं। जैसे ज्योतिष्मान अग्नि को शिखी अर्थात् केश से युक्त कहते हैं, वैसे ही केश के समान रश्मियाँ विकीर्ण करने वाले सूर्य, विद्युत और अग्नि की ज्योति को केशी कहा गया है। यह प्रकाश ही प्राण और अपान का संचालक है। इस प्रकाशमयी प्राणोपासना के कुछ तत्त्व ऋग्वेद में भी विद्यमान हैं- यथा 'अन्तश्चरति रोचनास्य प्राणाद्पनाती। व्यख्यनमहिषो दिवः' ।।४३ अर्थात् 'यलोक के महिष सूर्य की रोचना (रोशनी, दीप्ति), शरीर के मध्य से संचरण करती है जो प्राण के अपान की ओर जाती है'। इस सन्दर्भ में भाष्यकार सायण का कथन है- अस्य सूर्यस्य रोचना रोचमाना दीप्ति: अन्तः शरीरमध्ये मुख्य प्राणात्मना चरति वर्तते। किं कुर्वती। प्राणादपानती। मुख्य प्राणस्य प्राणाद्या: पेचवृत्तयः तत्रा प्राणनं नाड़ीभिरूधर्व वायोर्निगमनम्। तथा विधात्... अपाननं अवानमुखं वायोर्नयनम्। इस ज्योतिष्मती प्राणोपासना के तत्त्व यजुर्वेद अथर्ववेद और उपनिषदों में प्राप्त होते हैं। यहां प्रश्नोपनिषद् से पिप्लाद का एक वचन उद्धत है- आदित्यो वै प्राणो ..... अथादित्य उदयन्प्राची दिशं प्रविशति तेन प्राच्यान्प्राणान् रश्मिषु संनिधानेः'। अत: इसमें सारगर्भित तत्त्व यह है कि यह केशी वातरशन ज्योतिष्मती प्राणोपासना के योग का साधन करते थे, किन्तु इन स्थलों पर वातरशन जैसे किसी सम्प्रदाय की चर्चा तक नहीं की गई है। केशीसूक्त की रचना के करीब एक हजार वर्ष पश्चात् तैत्तरीय आरण्यक में वातरशनों का तीन बार उल्लेख हुआ है। प्रथम स्थल ५ पर स्वस्तिवाचन के पश्चात् अरुणकेतव और वातरशन का उल्लेख मात्र है। दूसरे स्थान ६ पर वातरशन ऋषियों की उत्पत्ति का वर्णन है“स प्रजापतिरेकः पुष्करपणे समभवत्। तस्यान्तर्मनसि कामस्समवर्तत। इदं सृजयम्।.... स तपो तप्यत्। स तपस्तप्त्वा शरीरमधुनत। तस्य मांसमासीत् ततो अरुणा केतवः वातरशना ऋषयाः उदतिष्ठत्। ये नरवास्ते वैखानसाः। ये वाला ते वालखिल्या:।।"