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________________ जनवरी-मार्च, 2016 40 : श्रमण, वर्ष 67, अंक 1, धातु का प्रयोग प्रायः वस्त्र पहनने के अर्थ में ऋग्वेद में मिलता है; उदाहरण के लिए अवशिष्टावासः सिन्धुराज ने कपड़े पहने 'युवं वस्त्रणि पीवसा वसाथे १५ अर्थात् हे मित्र वरुण! आप पुष्प वस्त्रों को पहनते हो। यहां अत्यन्त महत्त्वपूर्ण तथ्य यह है कि ‘भद्रा वस्त्राणि अर्जुन वसाना' १६ अर्थात् भद्र एवं साफ वस्त्रों को पहने हुए। यहाँ अर्जुन वस्त्राणि में मल (वस्त्र) का विलोम है। 'स तु वस्त्रण्यधा पेशनानि वसानो' १७ अग्नि सोने की जरी के वस्त्र पहने हुए, इसमें पेशन वस्त्र और पिशंग मल में इतना साम्य है कि पेशन और पिशंग एक ही धातु 'पिश्' के ही दो रूप हैं। 'मल' शब्द का प्रयोग निश्चित रूप से वैदिक साहित्य में मैल के अर्थ में प्रयुक्त किया गया है, यथा- आप: मलमिव प्राणैक्षीत । १८ जैसे जल मल को भली प्रकार से धो देता है ‘इदमापः प्रवहतावद्यं मलं चयत्१९ अर्थात् जल इस निन्दनीय मल को बहा ले जाओ। इस मैले अर्थ का विस्तार हुआ और 'मल' शब्द का अर्थ पाप भी हो गया । किन्तु भारोपीय में संस्कृत माला का अर्थ रंगना और मल का प्राथमिक अर्थ है रंगीन । यूनानी में मेलस्का अर्थ काला है और मिल्तोस रक्त वर्ण के लिए प्रयुक्त है। प्रस्तुत प्रसंग में स्मरणीय तथ्य यह है कि प्रारम्भ में मल का अर्थ रंगीन ही नहीं रंगीन वस्त्र होता था। इसका कारण है कि 'म्ली' धातु सर्वप्रथम चमड़े के रंगने के अर्थ में प्रयुक्त हुई। चमड़े रंगने वाले को वैदिक साहित्य में चर्मम्न कहा गया जहाँ 'म्ल' का ही रूप 'म्न' है। इस शब्द का समर्थन ' म्लातानि चर्माणि '२० रंगे हुए अजिन वस्त्र के उल्लेख से प्राप्त होता है। बाद में जब ऊन, कपास, शण आदि के कपड़े बनने लगे तो वस्त्र-मात्र को मल कहने लगे। प्रो० श्राडर ने लिथुआनी मालोस (भद्र-वस्त्र) और यूनानी मेल्लोस (ऊनी वस्त्र) से प्रयुक्त मल को समीकृत किया है। प्रस्तुत प्रसंग में मल रंगीन वस्त्र है। बिना रंगे हुए वस्त्र को अर्जुन वस्त्र २२ सफेद कपड़े को अनभिम्लात३ कहते थे। इस सन्दर्भ में 'वसते मला ' की तुलना तैत्तिरीय संहिता २४ के 'मलवद्वाससं' और शतपथ ब्राह्मण' के 'मलद्वाससं' से की जा सकती है। शतपथ ब्राह्मण में कथन है- अथ यद्युदक आत्मानं पश्येत्तदभिमन्त्रयेत मयि तेज इन्द्रिय यशो द्रविणं सुकृतं श्रीवैष स्त्रेणां यन्मलोद्वासास्त-स्मान्मलोद्वाससं यशस्विनीमभिमन्त्र्येत। अर्थात् अब जल में अपने को देखें और यह मंत्र पढ़ें- 'मुझमें तेज, इन्द्रिय, यश, सम्पत्ति और पुण्य हो । जिन स्त्रियों का मल उदास है वही उनकी श्री है। अतः मलोद्वास से युक्त यशस्विनी के पास जाकर उसको आमंत्रित करें। यहां मलोद्वास से तात्पर्य है ( रजस्राव से) रंजित वस्त्र । इसे स्त्री की श्री कहा गया है। इसे अवसर विशेष पर विशेष शक्तिशाली माना जाता था।
SR No.525095
Book TitleSramana 2016 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey, Rahulkumar Singh, Omprakash Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2016
Total Pages114
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size14 MB
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