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________________ मुनि परम्परा का विकास ऋग्वेद से लेकर महावीर तक निर्मला गुप्ता एवं श्रेयांश त्रिपाठी प्राचीन वैदिक वाङ्मय, जैन साहित्य, बौद्ध साहित्य, महाकाव्य और अन्य ब्राह्मण ग्रन्थों का अनुशीलन करने से यह स्पष्ट हो जाता है कि भारतवर्ष के धार्मिक परिदृश्य पर आर्य और आर्येत्तर ये दो समानान्तर विचारधारायें एक ही समय में विकसित हो रही थीं। आर्य विचारधारा का प्रतिनिधित्व वेद, उपनिषद्, वेदांग इत्यादि के द्वारा किया जा रहा था और इस विचारधारा का विकास वैदिक धर्म, सनातन धर्म या परम्परागत हिन्दू धर्म के रूप में हुआ; जबकि आर्येतर विचारधारा का प्रतिनिधित्व श्रमणों, मुनियों और व्रात्यों की परम्परा ने किया। बौद्ध और जैन साहित्य श्रमण विचारधारा के प्रमुख प्रतिनिधि हैं। प्राचीनता के दृष्टिकोण से जैन धर्म को बौद्ध धर्म से प्राचीन माना जाता है। अधिकांश विद्वान श्रमण परम्परा के उद्भव को ऋग्वैदिक मुनियों और यतियों से सम्बद्ध करते हैं। यह सच है कि 'मुनि' शब्द दोनों वैदिक और श्रमण परम्पराओं में समादृत है, किन्तु उपलब्ध साक्ष्य से मुनि तत्त्व उस अतीन्द्रिय ज्ञान की स्थिति का परिचायक है जो विभिन्न सम्प्रदायों में आध्यात्मिक महापुरुषों की होती है । 'मुनि' शब्द के दो अर्थ हैं- मौन - व्रत - धारी ' वाचंयमो मुनिः ' ' और 'अतीन्द्रियार्थदर्शी’।' मौनी के अर्थ में 'मुनि' शब्द की व्युत्पत्ति तो संदिग्ध प्रतीत होती है। यह शब्द संस्कृत के मूक और यूनानी के 'मुन्दोस्' का समवेत स्वरूप है, किन्तु इस शब्द का मौन - व्रत धारी के अर्थ में ‘अतीन्द्रियार्थदर्शी' के रूप में वैयाकरणिक दृष्टिकोण से कोई सम्बन्ध नहीं है । ३ दूसरे शब्द के रूप में 'मुनि' शब्द का अर्थ ज्ञानी है । सायण इसे अतीन्द्रियार्थदर्शी, बृहदारण्यक उपनिषद्” ‘विदित्वा मुनिर्भवति', पालि साहित्य 'धम्म - दस्सिस मुनिनो'' और मागधी वाङ्मय ‘नावेण मुणी होई तवेण होइ तावसो' रूप में पारिभाषित करते हैं। संस्कृत वैयाकरण मन् = ज्ञाने से इसकी व्युत्पत्ति करते हैं- 'मननात् मुनिः ।' मन् धातु भारतेरानी आध्यात्मिक साहित्य में महत्त्वपूर्ण है इनसे 'मनीषा', 'मति' 'मन् - धा, ‘मज्दा’ ‘मन्धाता’ इत्यादि विशिष्ट शब्द व्युत्पन्न किए गये परन्तु मन् धातु से मुनि शब्द उत्पन्न नहीं हो पाता। अतः वैयाकरणिक दृष्टिकोण से उणादि वर्ग में इसे मिलाकर 'मनेरुच्च सूत्र' बनाया गया और यहाँ विधान यह किया गया कि मन में 'उ' स्वर का आगम होकर 'मुनि' शब्द बना है । मुख्यतः यह वैयाकरणों का एक वाग्जाल मात्र है; क्योंकि मुनि शब्द 'मृण् प्रतिज्ञाने' अथवा पालि 'मुन् आने' से उत्पन्न होता
SR No.525095
Book TitleSramana 2016 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey, Rahulkumar Singh, Omprakash Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2016
Total Pages114
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size14 MB
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