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________________ श्रमण परम्परा समन्वित भारतीय परम्परा एवं कला में नारी शिक्षा ... : 33 करती हैं साथ ही महाभारत एवं रामायण में आये सन्दर्भ के अनुरूप ऐश्वर्य, सौन्दर्य, ग्राम, रक्षा इत्यादि का समवेत दैवीय स्वरूप प्रस्तुत करती हैं।२५ वस्तुत: मौर्य काल में नारी अंकन में देवत्व की भावना को संकेतों के रूप में ही प्रकट किया गया है क्योंकि मौर्य कला मूलत: प्रतीकात्मक कला रही है जिसका सुन्दरतम उदाहरण पटना के दिदारगंज से प्राप्त चामरधारिणी यक्षी (पटना संग्रहालय, पटना) में द्रष्टव्य है। शुंग काल में नारी अंकन में मातृत्व व दैवीय स्वरूप का और विस्तार हुआ, जिसे सांची, भरहुत, नागार्जुनीकोण्डा, शहडोल और चन्द्रकेतुगढ़ से प्राप्त उदाहरणों में देख सकते हैं। अब तक ज्ञात प्राचीनतम् सरस्वती मूर्ति मथुरा के कंकाली टीला से प्राप्त (१३२ई. राज्य संग्रहालय, लखनऊ, क्रमांक जे.२४) एवं जैन परम्परा से सम्बन्धित और अभिलेख युक्त है। ज्ञान की अधिष्ठात्री देवी सरस्वती के कर में पुस्तक का प्रदर्शन हुआ, परन्तु रूप विन्यास एवं मुद्रा की दृष्टि से सामान्य रूप में प्रस्तुत हुआ।२६ साथ ही शुंग-कुषाण युग में मथुरा में आयागपटों का निर्माण प्रारंभ हुआ और कुषाण युग के बाद इनका निर्माण बन्द हो गया। लेखों में इन्हें आयागपट या पूजा शिलापट कहा गया है। अमोहिनी द्वारा स्थापित आर्यवती पट (राज्य संग्रहालय, लखनऊ, जे-१) एवं स्तूपाकृति वाला आयागपट (राज्य संग्रहालय, लखनऊ, जे. २५५) इनमें सर्वाधिक प्राचीन हैं। आर्यवती पट पर छत्र से शोभित आर्यवती देवी की बामभुजा कटि पर और दक्षिण कर अभयमुद्रा में है। यहाँ आर्यवती की पहचान कल्पसूत्र (१६६) की आर्य यक्षिणी और भगवतीसूत्र (३.१.१३४) की अज्जा या आर्या देवी से भी की जा सकती है।२७ परन्तु यहाँ महत्त्वपूर्ण तथ्य यह है कि लेख में उल्लिखित सन्दर्भ के अनुसार आर्यावती वस्तुत: विदेशी स्त्री थी जो जैन धर्म के प्रति आस्था और शिक्षा से प्रभावित थी। विदेशी स्त्री का जैन शिक्षा में अवदान की दृष्टि से यह आयागपट महत्त्वपूर्ण है। इसके अतिरिक्त मथुरा तथा शहडोल से यक्षिणी, लक्ष्मी एवं अन्य नायिकाओं के अनेकशः अंकन प्राप्त होते हैं जिनमें नारी सौन्दर्य और उसके आध्यात्मिक स्वरूप का और अधिक विस्तार द्रष्टव्य है, जो उस काल में शिक्षा का ही एक रूप था। गुप्त काल नारी अंकन की दृष्टि से सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण काल रहा है जहाँ भारतीय संस्कृति और सौन्दर्य चेतना के अनुरूप नारी-रूप के मानक तय किये गये। वस्तुतः गुप्त काल नारी के दैवीय एवं भौतिक रूप के सन्तुलित समन्वय का काल रहा। जहाँ एक ओर गंगा-यमुना (अहिछत्रा एवं उदयगिरि) के माध्यम से नारी के रूप जल की अनिवार्यता और पूजा का भाव विकसित हुआ है तो दूसरी तरफ भक्ति और पवित्रता का भी सांकेतिक अंकन हुआ है२८ जो आज के पर्यावरणीय चिन्ता के प्रति
SR No.525095
Book TitleSramana 2016 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey, Rahulkumar Singh, Omprakash Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2016
Total Pages114
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size14 MB
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