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________________ श्रमण परम्परा समन्वित भारतीय परम्परा एवं कला में नारी शिक्षा ... : 31 उपासक एवं उपासिकाओं के समवेत प्रयास के रूप में देखा जा सकता है। प्राचीन जैन साहित्य में नवीं शती ई. में जिनसेन द्वारा रचित 'आदिपुराण' जैनों का बहुमान्य ग्रन्थ है। इस ग्रन्थ में स्वयं प्रथम तीर्थंकर आदिनाथ अथवा ऋषभनाथ द्वारा नारी-शिक्षा पर जोर दिया गया है जो स्वत: ही जैन परम्परा में नारी-शिक्षा के महत्त्व को स्थापित करता है। जैन धर्म के अनुसार प्रत्येक जीव को सम्यक् दर्शन, सम्यक् ज्ञान और सम्यक् चारित्र रूपी 'रत्नत्रय' धारण करने की आवश्यकता होती है। क्योंकि आत्मा का कलुष उसे 'अनन्त चतुष्टय' (ज्ञान, दर्शन, सुख एवं वीर्य) से सम्पन्न होने का एहसास नहीं होने देता, जो दुखः का कारण है। यही शिक्षा की भावना आचार्य जिनसेन ने 'आदिपुराण' में भी व्यक्त की है। आदिपुराण के अनुसार प्रथम तीर्थंकर ऋषभनाथ ने शिक्षा या विद्याओं का शुभारंभ स्वयं अपने सन्तति से किया। उन्होंने अपनी दोनों पुत्रियों- ब्राह्मी और सुन्दरी को विद्या प्रदान करने के पूर्व कहा कि 'तुम दोनों अनुपम विनय और शीलगुण से सम्पन्न हो' और ज्ञान के महत्त्व को बताते हुए कहा 'विद्यावती स्त्री ही सर्वश्रेष्ठ पद प्राप्त करती है।' १९ ऋषभदेव ने अपने पुत्रियों को विद्यार्जन हेतु आशीर्वाद देते हुए सर्वप्रथम अपने चित्त में स्थित श्रुतदेवी को आदरपूर्वक स्थापित किया, फिर दोनों हाथों से वर्णमाला लिखकर उन्हें लिपि का उपदेश दिया और अनुक्रम से उन्हें संख्या का ज्ञान कराया। इसके बाद ही भरत, बाहुबलि आदि पुत्रों को अन्यान्य शास्त्रों का अध्ययनं कराया। आचार्य जिनसेन ने विद्या के महत्त्व को स्थापित करते हुए ऋषभदेव के मुख से कहलवाया कि “विद्या ही मनुष्यों का यश और श्रेय करने वाली है। इतना ही नहीं अपितु अच्छी तरह से विद्यादेवी की आराधना सभी मनोरथ को पूर्ण करने वाली है। यही धर्म, अर्थ एवं कामरूपी फल सहित सम्पदाओं की परम्परा उत्पन्न करती है। यही मनुष्यों की बन्धु, मित्र और कल्याणकारी है।" आदिपुराण में गुरु के समीप जा कर अनेक आर्यिकाओं का उल्लेख आचार विधि के अनुरूप दीक्षा ग्रहण करने का प्रसंग नाम्मोलेख के साथ वर्णित है। तीर्थंकर ऋषभनाथ के समवसरण में ३,०,००० आर्यिकाओं के उपस्थित होने का उल्लेख आदिपुराण में हुआ है। इनमें से कुछ के नाम इस प्रकार हैं- अनन्तमति (४६.४७), अमितमति (४६.४७), कनकमाला (४६.४७-४८), गुणवती (४६.४५-४७), पद्मावती (७.३१), प्रभावती (७.३२), गणिनी (७.४२), सुप्रभा (७.४३), गुणवती एवं यशस्वती (४६.२१९), ब्राह्मी (२४.१७५), सुन्दरी (२४.१७७), सुलोचना (४७.२७८-२८८), सुदर्शना (७.४४)। इनमें से ब्राह्मी, सुन्दरी, अनन्तमति, अमितमति, गुणवती और पद्मावती गणिनी आर्यिकायें थीं। इसके साथ ही गणिनी आर्यिकाओं तथा उनके संघस्थ आर्यिकाओं का भी वर्णन हुआ है।२१ इसी प्रकार जैन
SR No.525095
Book TitleSramana 2016 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey, Rahulkumar Singh, Omprakash Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2016
Total Pages114
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size14 MB
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