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8 : श्रमण, वर्ष 67, अंक 1, जनवरी-मार्च, 2016
त्रीणि च्छन्दांसि कवयो वियेतिरे, पुरुरूपं दर्शतं विश्वचक्षणम्।
आपो वाता ओषधयस्तान्येकस्मिन् भुवन अर्पितानि।। इनके नाम और रूप अनेक हैं, अतः इन्हें 'पुरुरूपम्' कहा गया है। प्रत्येक लोक को ये तत्त्व जीवन रक्षा के लिए दिये गये हैं। “जीवेम शरदः शतम्" का उद्घोष करने वाले वेद शतायु होने के लिए स्वच्छ जल, विशुद्ध अन्न, पवित्र प्राणवायु एवं अकलुषित भूमि को महत्त्वपूर्ण कारक के रूप में व्याख्यायित करते हैं। वैदिक वाङ्मय में विविध पर्यावरण प्रदूषणों तथा उनके शोधन के उपायों का निर्देश विभिन्न वैदिक ऋचाओं में प्रतिविम्बित होता है। ऋग्वेद में वायु को भेषज गुणों से युक्त स्वीकार किया गया है- हे वायु! अपनी
औषधि ले जाओ, और यहाँ के सब दोष दूर करो, क्योंकि तुम ही सभी औषधियों से भरपूर हो- 'आ वात वाहि भेषजं विवात वाहि यद्रपः। त्वं हि विश्वभेषजो देवानां दूत ईयसे'। ऊर्जा के अपरिमित स्रोत सूर्य को 'जगत् की आत्मा' कहकर उसकी अभ्यर्थना की गयी है। उपनिषदों में सूर्य को प्राण की संज्ञा दी गई है। यज्ञों के माध्यम से वायुमण्डल को शुद्ध करना भी वेदों की चिन्ता रही है। वैदिक काल में पर्यावरण के परिस्कार के लिए यज्ञ-हवन संपन्न किये जाते थे। ईशावस्योपनिषद्' अपने प्रथम मन्त्र में ही जगत् के सम्पूर्ण सजग और बुद्धिजीवी प्राणियों को प्रकृति के प्रति निष्काम भावना रखते हुये भोग में त्याग का सन्देश देता है। यजुर्वेद में वृक्षों को कुल्हाड़ी से यज्ञ के अतिरिक्त कार्यों के लिये न काटने का निर्देश है साथ ही वृक्ष-संरक्षण के लिये 'वनानांपतये नमः', 'वृक्षाणां पतये नमः', 'ओषधीनांपां पतये नमः', 'अरण्यानां पतये नमः', 'नमो वन्याय च' आदि मन्त्र द्रष्टव्य हैं। मत्स्यपुराण में वृक्ष के महत्त्व को दर्शाते हुए उसे दस पुत्रों के बराबर माना गया है -'दशहदसमः पुत्रः दश पुत्रसमो द्रुमः'। पृथ्वी संरक्षण के विषय में अथर्ववेद का सम्पूर्ण पृथिवी सूक्त द्रष्टव्य है। जल में गन्दी या विजातीय वस्तुओं को डालने का निषेध किया गया है- 'नाप्सु मूत्रपुरीषं कुर्यात् निष्ठीवेत् । अथर्ववेद में जल के विषय में कहा गया है- “आपो विश्वस्य भेषजो"। यजुर्वेद में “मित्रस्याहं चक्षुसा सर्वाणि भूतानि समीक्षे''१० कहकर सभी प्राणियों के प्रति सहृदयता का परिचय देना ही जीवन का सही लक्षण माना गया है। अत: पर्यावरणीय समस्याओं से निजात पाने के लिये हमें पुन: अपने ज्ञानराशि वेदों की