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________________ 6 : श्रमण, वर्ष 67, अंक 1, जनवरी-मार्च, 2016 मृदा प्रदूषण- आज मृदा प्रदूषण के कारण मरुस्थलीकरण का विकास हो रहा है। अत्यधिक पैदावार की लालच में मानव कीटनाशकों एवं उवर्रकों का अन्धाधुन्ध एवं असंतुलित प्रयोग कर रहा है। फलत: मृदा की उर्वरा शक्ति नष्ट हो रही है। मिट्टी की शुष्कता, अपरदन आदि में वृद्धि हो रही है। फलतः रेगिस्तान बढ़ रहे हैं। भोजन के माध्यम से कीटनाशकों के हानिकारक तत्त्व मानव शरीर में पहुंचकर अनेकानेक रोगों को उत्पन्न कर रहे है। विकास की गति के साथ भूक्षरण की गति भी बढ़ती जा रही है। कारण स्पष्ट है मिट्टी को पैसे रुपये में बदलना। भारत में प्रतिवर्ष ६०० करोड़ टन मिट्टी का क्षरण होता है और ७०० करोड़ रुपये मूल्य के उर्वरक समाप्त हो जाते हैं। दरअसल विकास एवं पर्यावरण एक दूसरे के विरुद्ध नहीं है, प्रकृति का शोषण करने के बदले उसके साथ सहयोग करके हम विकास एवं पर्यावरण को एक दूसरे का पूरक बना सकते हैं। सामाजिक-सांस्कृतिक प्रदूषण- इसका तात्पर्य उन सामाजिक संबन्धों, समूहों, संगठनों, संस्थाओं के सामाजिक ढांचे से जिसका व्यक्ति एक हिस्सा है। सांस्कृतिक पर्यावरण मनुष्य द्वारा सीखे हुए व्यवहारों तथा उसके अनुभवों से बना है। इसके अन्तर्गत धर्म, नैतिक, प्रथायें, परम्परायें, जनरीतियां, लोकाचार, व्यवहार प्रतिमान तथा अन्य बहुत से नियम है जो सदैव हमारे जीवन को चारों ओर से घेरे रहते हैं। १९७० के दशक में ही यह अनुभव किया गया कि वर्तमान विकास की प्रवृत्ति असंतुलित है एवं पर्यावरण की प्रतिक्रिया उसे विनाशकारी विकास में परिवर्तित कर सकती है। तब से लेकर वर्तमान वैश्विक स्तर पर पर्यावरण सम्बन्धित समस्याओं के समाधान हेतु संयुक्त राष्ट्रसंघ द्वारा कई प्रयास किये जा चुके है। जैसे- १९७२ का स्टॉक होम सम्मेलन, १९९२ में रियोडिजेनरो सम्मेलन, १९९७ में क्योटो संधि, २००७ में बाली सम्मेलन, २०१४ ग्लोबल इनवायरनमेण्ट फैसिलिटी (जी०ई०एफ०) कौंसिल की ४६ मीटिंग और २०१५ में यूनाइटेड नेशन्स की पेरिस क्लाइमेट चेंज सम्मिट में इस विषय पर गहन विचार विमर्श हुआ, किन्तु कोई ठोस उपाय नहीं किया जा सका। परिणामत: पर्यावरणीय समस्याएँ ज्यो की त्यों बनी हुई हैं। भारतीय चिन्तनपरम्परा में पर्यावरण संरक्षण आइये देखें हमारी भारतीय दार्शनिक चिंतन परम्परा कहां तक इन समस्याओं का समाधान करती हैवेदों से लेकर, उपनिषदों, गीता, सांख्य-योग, मीमांसा आदि दर्शनों में पर्यावरण पर चिन्तन हुआ है किन्तु चूंकि पारिस्थितिकी या पर्यावरण पद अर्वाचीन है, इसलिये उन
SR No.525095
Book TitleSramana 2016 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey, Rahulkumar Singh, Omprakash Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2016
Total Pages114
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size14 MB
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