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________________ गाहा : तदवत्थं तं दठ्ठे हाहा - सद्दो समुट्ठिओ तत्थ । तं सोउं नहवाहण - खयरोवि समागओ तत्थ । । ८४ । । संस्कृत छाया : तदवस्थां तां दृष्ट्वा हा! हा! शब्दः समुत्थितस्तत्र । तं श्रुत्वा नभोवाहन - खचरोऽपि समागतस्तत्र ।। ८४ ।। गुजराती अनुवाद : तेणीने आ हालतमां जोईने त्यां हाहाकार मची गयो जे सांभळी ने नभोवाहन विद्याधर त्यां आव्यो । हिन्दी अनुवाद : उसकी यह हालत देखकर वहाँ हाहाकार मच गया जिसे सुनकर नभोवाहन विद्याधर वहाँ आया। गाहा : नाऊण विस- वियारं मंते तंते पउंजई विविहे । विस निम्महणे मणिणो आबंधई तीए अंगम्मि ।। ८५ । । संस्कृत छाया : ज्ञात्वा विषविकारं मन्त्रान् तन्त्राणि प्रयुङ्क्ते विविधानि । विष निर्मथने मणीनाबध्नाति तस्या अङ्गे ।। ८५ ।। गुजराती अनुवाद : झेर नुं परिणाम जाणीने विविध प्रकार ना मंत्र-तंत्र नो उपयोग करवा मां आव्यो अने झेर काढवा माटे तेणीने अंगे मणीओ बांधवा मां आव्या । हिन्दी अनुवाद : जहर का परिणाम जानकर उसे उतारने के लिए विविध प्रकार के तन्त्रमन्त्र का उपयोग किया गया और जहर निकालने के लिए उसके शरीर में मणि बांधी गयी। गाहा : न य तीए कोवि गुणो जाओ विस- धारियाए बालाए । आहूया अह बहवे विस-मंत वियाणया खयरा ।। ८६ ।।
SR No.525094
Book TitleSramana 2015 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSundarshanlal Jain, Ashokkumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2015
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size15 MB
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