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गाहा :
भो चित्तवेग! तत्तो पुणरवि सो केवली मए पुट्ठो।
भयवं! केत्तियमा कत्थ व मह होज्ज उप्पत्ती? ।।६५।। संस्कृत छाया :
भोश्चित्रवेग! ततः पुनरपि स केवली मया पृष्टः ।
भगवन्! कियतायुः कुत्र वा मम भवेदुत्पत्तिः? ।।६५।। गाहा :
को व पिया मह होही बोहिस्सइ को जिणिंद-धम्मम्मि? ।
एवं च मए भणिओ; भयवं! सो भणिउमाढत्तो ।।६६।। संस्कृत छाया :
को वा पिता मम भविष्यति? भोत्स्यति को जिनेन्द्र-धर्मे? ।
एवं च मया भणितो भगवन्! स भणितु-मारब्धः ।।६६।। गुजराती अनुवाद :
हे चित्रवेग! फरी में केवली ने पछयं के मारु केटलं आयुष्य बाकी छे अने हुं क्या उत्पन्न थईश? कोण मारो पिता थशे अने कोण मने जिनेश्वर नो धर्म प्रतिबोध करशे। त्यारे-केवली भगवंते फरमाव्यु। हिन्दी अनुवाद :
हे चित्रवेग! बाद मैने केवली से पूछा कि मेरी कितनी उम्र बाकी है और मैं कहाँ पैदा होऊँगा। मेरा पिता कौन होगा और कौन मझे जिनेश्वर धर्म का प्रतिबोध देगा। तब केवली भगवंत ने फरमाया। गाहा :
चिट्ठइ आउगसेसं एगवीसं वास कोडि-कोडीओ। तत्तो चइऊण तुमं आउक्खए हथिणपुरम्मि ।।६७।। सिरि-अमरकेउ-रन्नो देवी-कमलावईए कुच्छिम्मि ।
बहु-उवयाइय-लद्धो उववज्जिसि पुत्त-भावेण ।।६८।। संस्कृत छाया :
तिष्ठत्यायुष्क शेष-मेकविंशति-वर्ष-कोटीकोटयः । . ततश्च्युत्वा त्वमायुःक्षये हस्तिनापुरे ।।६७