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________________ संस्कृत छाया : भद्र! विधुप्रभ! सोऽहं विहरन्नघेह पुरे प्राप्तः । अथैकरात्रिक्या स्थितश्च प्रतिमयाऽथात्र ।।६।। गुजराती अनुवाद : हे विधुप्रय भद्र, ते हुं धनवाहन विचरतो आ नगर मां आव्यो ने एक रागिनी प्रतिमा मां रहेलो। हिन्दी अनुवाद : हे विधुप्रभ भद्र! वह मैं धनवाहन विचरण करते हुए इस नगर में आया और एक रात की प्रतिमा में रहा। गाहा :___ सोवि हु कविलो नरए अणुहविऊं दारुणं महं दुक्खं । सागरमेगं अहियं आउं भोत्तूण उव्वट्टो।।६१।। संस्कृत छाया : सोऽपि खलु कपिलो नरकेऽनुभूय दारूणं महद् दुःखम् । सागरमेकमधिकमायुर्भुक्त्वोवृत्तः ।।६१।। गुजराती अनुवाद : पेलो कपिल पण नरक मां खूबज दुःख वेठीने एक सागटोपम थी वधु अयुष्य भोगवीने बहार आव्यो। हिन्दी अनुवाद : वह कपिल भी नर्क में एक सागरोपम से भी अधिक समय बिताकर आयु का भोग कर बाहर आया। गाहा : जाओ मगहा विसए आभीरो साभडोत्ति नामेण । काऊण य बाल-तवं भवणवई सो सुरो जाओ ।।६२।। संस्कृत छाया : जातो मगध-विषयेऽऽभीरः साभड इति नाम्ना। कृत्वा च बाल-तपो भवनपतिः स सुरो जातः ।।६२।।
SR No.525094
Book TitleSramana 2015 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSundarshanlal Jain, Ashokkumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2015
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size15 MB
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