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________________ संस्कृत छाया : अथान्यदा च पनः पुत्रमभिसिव्य राज्ये । युवराजेन समेतः प्रव्रजितो गुरु-समीपे ।।३५।। गुजराती अनुवाद : हवे एक वखत पद्मराजाये पोताना पुत्रने राजगादी पर बेसाड़ी ने युवराज साथे गुरुपासे दीक्षा लीधी। हिन्दी अनुवाद : तब एक समय पद्म राजा ने अपने पुत्र को राजगद्दी सौंपकर युवराज के साथ गुरु के पास दीक्षा ले ली। गाहा : दोनिवि गुरुणा सहिया विहरंता बहुविहेसु देसेसु । सत्येण समं चलिया रयणपुरं नाम वर-नयरं ।।३६।। संस्कृत छाया : द्वावपि गुरुणा सहितौ विहरन्ती बहुविधेषु देशेषु । सार्थेन समं चलिती रत्नपुरं नाम वरनगरम् ।।३६।। गुजराती अनुवाद : छने जणा गुरुजी साथे विहार करता विविध प्रदेशों मां विचरता सार्थनी साथे रत्नपुर नगरमां पधार्या। हिन्दी अनुवाद : ___ दोनों लोग गुरु के साथ विविध प्रदेशों में विहार करते हुए सार्थ सहित रत्नपुर नगर में आये। गाहा : सत्थाओ कहवि भट्ठा दोनिवि अडवीए मोहिया मुणिणो । - संपत्ता पल्लीए पाणय-अट्ठा पविठ्ठा ते ।।३७।। संस्कृत छाया : सार्थात् कथमपि भ्रष्टो द्वावप्यटव्यां मोहिती मुनी। सम्प्राप्तौ पल्लयां पानकार्थ प्रविष्टौ तौ ।।३७।। गुजराती अनुवाद : सार्थथी छूटा पडेला भूला पडेला ते चंने महात्माओ धीलपल्ली मां पाणी वहोरवा प्रवेश्या।
SR No.525094
Book TitleSramana 2015 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSundarshanlal Jain, Ashokkumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2015
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size15 MB
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