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________________ जैन परम्परा के परिप्रेक्ष्य में विवाह पद्धति एवं वर्ण व्यवस्था : 23 वर्णाश्रम धर्म के आधार पर शूद्रों के धर्म सम्बन्धी नैसर्गिक अधिकारों का अपहरण नहीं कर सकते।२० अनेक ग्रन्थों का आलोड़न-विलोड़न करने के पश्चात् पं० फूलचन्द्र जी शास्त्री ने निष्कर्ष स्वरूप लिखा है कि- जैनधर्म में वर्ण व्यवस्था को रञ्च मात्र भी स्थान नहीं है। यदि जैन धर्म के अनुयायी लौकिक दृष्टि से स्वीकार भी करते हैं तो उसे कर्म के आधार से ही स्वीकार किया जा सकता है, जन्म से नहीं।२१ विवाह एक सामाजिक व्यवस्था है। इसमें योग्य वर एवं योग्य वधु का परस्पर चयन ही मुख्य है। सामाजिक दृष्टि से सवर्ण विवाह ही करना चाहिए। वैसे पुराणों में सवर्ण के साथ ही असवर्ण विवाह के भी उदाहरण मिलते हैं। मनुस्मृति आदि वैदिक ग्रन्थों में विवाह के जो नियम हैं उन्हें महापुराण के लेखन काल से लेकर जैन परम्परा में भी स्वीकार कर लिया गया है। परन्तु इतने मात्र से पूर्वकाल में उन नियमों का उसी रूप में पालन होता था, यह नहीं कहा जा सकता है।२२ क्योंकि पुराणों में लिखा है कि वीरक श्रेष्ठी की स्त्री वनमाला को राजा सुमुख ने बलात् अपने घर में रख लिया था और उसे पटरानी बना लिया। कालान्तर में दोनों ने मुनि को आहार दिया और पुण्य बन्धकर भोग-भूमि प्राप्त की।२३ इसी प्रकार प्रद्युम्नचरित में आया है कि- हेमरथ राजा की पत्नी चन्द्रप्रभा को राजा मधु ने बलात् अपहरण कर उसे पटरानी बनाया और कालान्तर में दोनों ने मुनिधर्म और आर्यिका के व्रत को स्वीकार कर सद्गति पाई।२४ यहाँ इस कथन से मात्र इतना ही अभीष्ट है कि विवाह एक सामाजिक व्यवस्था है और इसके कारण किसी के भी धार्मिक क्रिया-कलापों पर अंकुश नहीं लग सकता है। हाँ! सामाजिक व्यवस्था बनी रहे इसके लिये समाज में समय-समय पर अनेक नियम बनाये गये हैं, जिन्हें सामाजिक दृष्टि से स्वीकार भी करना चाहिये। सन्दर्भ : कन्यादानं विवाहः। -सर्वार्थसिद्धि ७/२८ सद्वेद्यचारित्रमोहोदयात् विवहनं कन्यावरणं विवाह इत्याख्यायते - तत्त्वार्थवार्तिक ७/२८/१ सद्वेद्यचारित्रमोहोदयात् विवहनं विवाहः। - तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक ७/२८ नीतिवाक्यामृत ३१/३ यशस्तिलकचम्पू, महाकाव्यम्, अष्टम आश्वास:- अनुवादक पंडित सुन्दरलाल शास्त्री, श्री महावीर जैन ग्रन्थमाला, वाराणसी, १९७१, पृ०.३७९
SR No.525094
Book TitleSramana 2015 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSundarshanlal Jain, Ashokkumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2015
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size15 MB
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