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________________ संस्कृत छाया : परिच्छिन्न-चरण-युगलो गुरु-प्रहरणघात-जर्जरितदेहः । गाढं तृषाभिभूतोऽद्याऽपि तिष्ठामि जीवन् ।।२०९।। गुजराती अनुवाद : कपायेला चरणवाळो अने घणा शस्त्रोंना घात थी हणायेलो जर्जरित देहवाळो अत्यंत तरस्यो हुँ हजी जीवं छु। हिन्दी अनुवाद : कटे पैर तथा अनेक शस्त्रों से हत जख्मी शरीर वाला तरसता मैं अभी जीवित हूँ। गाहा: तं सोउं धणदेवो पुरिसं पट्टविय पाणिय-निमित्तं । अइगुरु-विसाय-जुत्तो पत्तो अह तस्स पासम्मि ।। २१०।। संस्कृत छाया : तं श्रुत्वा धनदेवः पुरुषं प्रस्थाप्य पानीयनिमित्तम् । अतिगुरुविषादयुक्तः प्राप्तोऽथ तस्य पार्थे ।।२१०।। गुजराती अनुवाद : स सांभळीने धनदेवे पाणीमाटे एक माणसने मोकल्यो अने पोते खूब उदास चहेरे देवशर्मा नी पासे आव्यो। हिन्दी अनुवाद : यह सुनकर धनदेव ने पानी लाने के लिए एक आदमी को भेजा और स्वयं अत्यन्त उदास, देवशर्मा के पास आया। गाहा : भणियं धणदेवेणं साहसु भो! केण विलसियं एयं । सो कत्थ सुप्पइट्ठो अह सो सणियं समुल्लवइ ।। २११।। संस्कृत छाया : भणितं धनदेवेन कथय भो! केन विलसितमेतद् । स कुत्र सुप्रतिष्ठोऽथ स शनैः समुल्लपति ।।२११।। गुजराती अनुवाद :____ पछी धनदेवे पूछयु कोणे आ बधुं कर्यु अने सुप्रतिष्ठ क्यां छे। त्यारे देवशर्मा ए धीरे थी का।
SR No.525094
Book TitleSramana 2015 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSundarshanlal Jain, Ashokkumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2015
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size15 MB
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