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________________ संस्कृत छाया : तस्मादिदानीं गत्वा वैताब्ये सिद्ध-कूट-शिखरे । शाश्वतजिन-प्रतिमानां महिमानमष्टाह्निकं कृत्वा ।।१३७।। अभ्यर्थ्य धरणेन्द्रं सर्वास्तुभ्यं खचर-विद्याः । दत्वा यथाविधिना गमिष्यामि तदा स्व-स्थानम् ।।१३८।। युग्मम्।। गुजराती अनुवाद : तेथी हमणा वैहाढ्य पर्वतना सिद्भकूट शिखर ऊपर जईने शाश्वती जिनप्रतिमाना महिमानो अट्ठाई महोत्सव करीने धरणेन्द्र ने कही ने तने विधिपूर्वक बधी विद्या आपीने पोताना स्थाने जईश. हिन्दी अनुवाद : इसलिए अभी वैताढ्य पर्वत के सिद्धकूट शिखर पर जाकर शाश्वत जिन प्रतिमा की महिमा में अट्ठाई महोत्सव कर धरणेन्द्र को बताकर तुम्हें विधिपूर्वक सभी विद्या देकर अपने स्थान पर जाऊँगा। गाहा : एवं सुरेण भणिओ पय-जुयलं पणमिऊण से खयरो। सुर-वर! महा-पसाओ एवं होउत्ति वज्जरइ ।।१३९।। संस्कृत छाया : एवं सुरेण भणितो पदयुगलं प्रणम्य तस्य खचरः । सुरवर! महाप्रसाद एवं भवतु इति कथयति ।।१३९।। गुजराती अनुवाद : ओ प्रमाणे देवे कहयुं त्यारे विद्याधर देव ना पग मां पड़ी ने प्रणाम करीने आपे घणी कृपा करी अम कहे छ। हिन्दी अनुवाद : ऐसा देव के कहने के बाद विद्याधर देव के चरणों में गिरकर प्रणाम करते हुए 'आपने मुझ पर बहुत कृपा की' ऐसा कहा। गाहा : बहु-माण-जुयं तत्तो आभासित्ता ममं तु सो खयरो। घणदेव! मह समप्पिय मणिमेयं गुरु-पमोएण ।।१४०।।
SR No.525094
Book TitleSramana 2015 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSundarshanlal Jain, Ashokkumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2015
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size15 MB
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