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________________ संस्कृत छाया : अन्यच्च, किल पूर्व-वैरिणाऽपहतो जात-गुरुरोषेण । ततचित्रवेग! खचराषिपस्य गेहे वर्षिष्यसे ।।१३१।। इति तदा केवलिना भाविभवं मम कथयता । आदिष्टं तस्मात् त्वया भवितव्यं खचरनाथेन ।।१३२।। युग्मम्।। गुजराती. अनुवाद : वळी, पूर्वभवना वैरी वड़े द्वेष थी अपहरण करायेलो तुं हे चित्रवेग! विद्याधरना अधिपति ने घरे मोटो थईश. आq ते वखते केवली भगवते मने जे कहयुं हतुं ते रीते ते कारण थी तुं विद्याधर थईश। हिन्दी अनुवाद : पूर्व भव के वैरी द्वारा अपहरण कराया हुआ तूं हे चित्रवेग! विद्याधर के अधिपति के घर बड़ा होगा और उस समय केवली भगवंत ने मुझे जो कहा था उसी प्रकार, उसी कारण से तूं विद्याधर होगा। गाहा : वेयड्ढ-दक्खिणाए सेढीए सयल-खयर-नाहाणं । सामिं करेमि संपइ तुमंति, किं एत्य अन्नेण? ।।१३३।। संस्कृत छाया : वैताब्य-दक्षिणायां श्रेण्यां सकल-खचर-नाथानाम् । स्वामिनं करोमि सम्प्रति त्वमिति किमत्रान्येन? ।।१३३।। गुजराती अनुवाद : वेताढ्य पर्वत नी दक्षिण श्रेणी मां चधा विद्याधरो ना नाथनो स्वामि तने हुं बनाईं छु. पछी तारे बीजु शुं काम छ। हिन्दी अनुवाद : वैताढ्य पर्वत की दक्षिण श्रेणी में स्थित समस्त विद्याधरनाथों का मालिक मैं तुम्हें बनाता हूँ, उसके बाद तुम्हें क्या काम है। गाहा : मज्झ पभावाओ तुह सव्वाओ चेव खयर-विज्जाओ। होहिंति पढिय-सिद्धा अहियाओ अन्न-खयरेहिं ।।१३४।।
SR No.525094
Book TitleSramana 2015 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSundarshanlal Jain, Ashokkumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2015
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size15 MB
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