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________________ 52 : श्रमण, वर्ष 66, अंक 3, जुलाई-सितम्बर, 2015 रचित ग्रन्थों का शतांश भी अभी तक प्रकाश में नहीं आया है। इसका एक कारण तो यह है कि उनके द्वारा रचित अनेक ग्रन्थ या तो लुप्त हो गये हैं या खण्डित रूप में होने से अपूर्ण हैं। काल-कवलित हुए अनेक वैद्यक ग्रन्थों का उल्लेख विभिन्न आचार्यों की वर्तमान में उपलब्ध अन्यान्य कृतियों में मिलता है। विभिन्न ग्रन्थ भण्डारों तथा जैन-मंदिरों में खोजने पर अनेक वैद्यक ग्रन्थों के प्राप्त होने की सम्भावना है। अत: जैन समाज तथा विद्वानों को इस भारतीय ज्ञान के विकास हेतु आवश्यक प्रयत्न करना चाहिए। सन्दर्भ : १. हिताहिंत सुखं दुःखमायुस्तस्य हिताहितम्। मानं च तच्च युत्तोक्तमायुर्वेदः स उच्यते।। चरकसंहिता, १/४१ २. कायचिकित्साद्यष्टाङ्ग आयुर्वेद: भूतिकर्मजांगुलिप्रक्रमः। प्राणापान विभागोऽपि यत्र विस्तरेण वर्णितस्तत् प्राणावायम् ।। तत्त्वार्थराजवार्तिक, १/२० ३. आचार्यरत्न श्री देशभूषण जी महाराज अभिनन्दन ग्रन्थ, पृ० १७८ उद्धृत- जैन ई लाइब्रेरी.ओआरजी ४. जैन आयुर्वेद का इतिहास, डॉ० राजेन्द्र प्रसाद भटनागर, सूर्य प्रकाशन संस्थान, उदयपुर, १९८४, पृ० १५-१६ ५. वही, पृ० १७ ६. कल्याणकारक, २०/८५-८६ ७. जैन सिद्धान्त भास्कर, भाग-४, किरण-२ ८. आचार्यरत्न श्री देशभूषण जी महाराज अभिनन्दन ग्रन्थ, पृ० १८१-८२ ९. जैन साहित्य का बृहद् इतिहास, भाग-५, पं. अम्बालाल प्रे० शाह, पार्श्वनाथ शोधपीठ, वाराणसी, १९९३, पृ० २२८ १०. वही, पृ० २२६ ११. वही, पृ० २२८ १२. जैन आयुर्वेद का इतिहास, पूर्वोक्त, पृ० ४६-४८ १३. वही पृ० ४९-५१ १४. जैन साहित्य का वृहद् इतिहास भाग-५, पूर्वोक्त, पृ० २२७ । १५. वही पृ० २२८, कल्याणकारक, प्रस्तावना, पृ० ३८ उद्धृत-जैन आयुर्वेद का इतिहास, पूर्वोक्त, पृ० ५३ १६. आचार्यरत्न श्री देशभूषण जी महाराज अभिनन्दन ग्रन्थ, पूर्वोक्त, पृ० १८१ १७. वही, पृ० १८१
SR No.525093
Book TitleSramana 2015 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSundarshanlal Jain, Ashokkumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2015
Total Pages114
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size13 MB
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