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| विद्यापीठ के प्रांगण में पार्श्वनाथ संग्रहालय के उच्चीकरण का कार्य प्रारम्भ पार्श्वनाथ विद्यापीठ स्थित पार्श्वनाथ संग्रहालय के उच्चीकरण का कार्य प्रारम्भ हो गया है। आदरणीय श्री सुदेव बरार, सदस्य, प्रबन्ध समिति एवं श्री सतीश चन्द जैन, वित्त नियन्त्रक, पार्श्वनाथ विद्यापीठ ने दिनांक २२ सितम्बर २०१५ को नवकार महामन्त्र का पाठ कर संग्रहालय के विस्तार भवन की आधारशिला रखी। इस अवसर पर संस्थान के संयुक्त निदेशक डॉ. श्रीप्रकाश पाण्डेय, शोध अध्येताद्वय डॉ. राहुल कुमार सिंह और डॉ. श्रीनेत्र पाण्डेय, पुस्तकालयाध्यक्ष डॉ. ओमप्रकाश सिंह, प्रशासनिक अधिकारी श्री राजेश चौबे के साथ संस्थान के अन्य कर्मचारीगण तथा इन्दिरा गांधी राष्ट्रीय कलाकेन्द्र के सम्मानित सदस्यगण उपस्थिति थे। ध्यातव्य है कि पार्श्वनाथ संग्रहालय के उच्चीकरण हेतु संस्कृति 'मन्त्रालय, भारत सरकार से अनुदान प्राप्त हुआ है। लाला हरजसराय जैन स्मृति व्याख्यानमाला के अन्तर्गत
प्रो. नलिनी बलबीर का व्याख्यान दिनांक ३० सितम्बर २०१५ को पार्श्वनाथ विद्यापीठ की लाला हरजसराय जैन स्मृति व्याख्यानमाला का पुनः प्रारम्भ किया गया। व्याख्यानमाला के प्रथम पुष्प के रूप में डॉ. नलिनी बलबीर, प्रख्यात जर्मन इण्डोलाजिस्ट एवं जैन-बौद्ध दर्शन, संस्कृत, पालि की विशिष्ट विद्वान्, सोरबोन यूनिवर्सिटी, पेरिस, का व्याख्यान Aesthetics and Peacefulness:Jaina views on the Jina's Beauty and its Representations: विषय पर आयोजित किया गया। व्याख्यानमाला सत्र की अध्यक्षता प्रोफेसर मारुतिनन्दन तिवारी, प्रख्यात प्रतिमाविज्ञानी एवं प्रोफेसर इमरीटस, कला इतिहास विभाग, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय ने की। मुख्य अतिथि थे प्रसिद्ध समाजसेवी श्री धनपत राजजी भंसाली। व्याख्यानमाला के सभी प्रमुख अतिथिगण एवं उपस्थित सभी विद्वज्जनों का स्वागत् संस्थान के संयुक्त निदेशक डॉ. श्रीप्रकाश पाण्डेय ने किया। संस्थान का परिचय पुस्तकालयाध्यक्ष डॉ. ओमप्रकाश सिंह ने दिया। अपने व्याख्यान में डॉ. नलिनी बलबीर ने कहा कि तीर्थंकर महावीर सहित सभी जिन अथवा तीर्थंकरों की शरीर रचना उच्चकोटि की थी। जिन शरीर साधारण शरीर से विशिष्ट होता है। जिन के होठों की तुलना साहित्य में बिम्ब फल से की गयी है। वह नैसर्गिक रूप से सुन्दर होता है। सौन्दर्य और आत्मशुद्धि का घनिष्ठ सम्बन्ध है।