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________________ 24 : श्रमण, वर्ष 66, अंक 2, अप्रैल-जून, 2015 'महाराष्ट्राश्रयां भाषां प्राकृतं विदुः'। महाराष्ट्री में गेयता का वैशिष्ट्य है, इसमें पद बड़े ही सुकुमार होते हैं। उच्चारण की क्लिष्टता का अभाव इसकी प्रमुख विशेषता है। मुद्राराक्षस में महाराष्ट्री प्राकृत के कतिपय उदाहरण इस प्रकार हैचर का कथन महाराष्ट्री में इस प्रकार है पणमह जमस्स चलणे किं कज्जं देवएहि अण्णेहि। ऐसो खु अण्णभत्ताणं हरइ जी चडफडतं।। अर्थात् यमराज के चरणों में प्रणाम करो! इधर देवताओं को पूजने से क्या लाभ? क्योंकि अन्य देवताओं के उपासकों के प्राण भी यमराज हर ले जाते हैं। पुनश्च - पुरिसस्स जीविदव्वं विसमादो होइ भत्तिगहिआदो। मारेइ सव्वलोअं जो तेण जमेण जीआमो।।२१ अर्थात् हम सबों की जिन्दगी सदैव इस भयंकर यमराज की भक्ति पर निर्भर करती है। वही यम जो प्राणिमात्र के लिए मृत्यु है- हमारे जीवन का आधार है। नटी का एक कथन महाराष्ट्री प्राकृत का उदाहरण इस प्रकार है अज्ज इयह्नि। अण्णाणिओएण मं अज्जो अणुगेणदु।। २२ अर्थात् आर्य! मैं आ गयी आदेश देकर मुझे अनुगृहीत करें। चतुर्थ अंक में पुरुष का कथन महाराष्ट्री प्राकृत में इस प्रकार है दूले पच्चासत्ती दंसणमवि दुल्लहं अधण्णेहि। कल्लाणकुलहलाणं देआणं विअ मणुस्सदेआणं। १ अर्थात् स्वर्णमय मेरु पर्वत पर रहने वाले देवताओं के समान महान एवं उन्नतवंश में उत्पन्न राजाओं को दुर्भाग्यशाली व्यक्तियों से दर्शन भी दुर्लभ है, समीप रहना तो सर्वथा कठिन है। मागधी प्राकृत भगवान बुद्ध ने जिस भाषा में उपदेश दिया था, वह निःसन्देह मागधी थी, पालि नहीं। मागधी का मूल आधार मगध के आसपास की भाषा है। वररुचि इसे शौरसेनी से निकली हुई मानते हैं- 'प्राकृत शौरसेनी' लंका में पालि को ही मागधी कहते हैं।
SR No.525092
Book TitleSramana 2015 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSundarshanlal Jain, Ashokkumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2015
Total Pages210
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size15 MB
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