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________________ संस्कृत छाया ततस्तदभिमुखं चलिता भयलोललोचना अहम् । कथंकथमपि खलु सम्प्राप्ता तस्मिन् प्रदेशे कृच्छ्रेण ।। २२६ ।। गुजराती अनुवाद २२६. त्यारे थयथी चञ्चल नेत्रवाली हुं ते सरोवर तरफ चाली, केमे करीने ते स्थाने महात्महेनते पहोंची. हिन्दी अनुवाद भययुक्त चंचल नेत्रों वाली मैं उस सरोवर की तरफ चल पड़ी और काफी मेहनत करने के बाद वहाँ पहुँची। गाहा पीयं च तत्थ सलिलं उवविट्ठा तरु-वरस्स हिट्ठम्गि । एत्थंतरम्मि तरणी अंतरिओ पसरिया रयणी ।। २२७।। संस्कृत छाया पीतं च तत्र सलिलमुपविष्टा तरुवरस्याऽधः । अत्रान्तरे तरणिरन्तरितः प्रसृता रजनी ।। २२७ ।। गुजराती अनुवाद २२८. त्यां पाणी पीयूं अने वृक्षनी नीचे बेठी. तेटलीवारमा सूर्यास्त थइ गयो अने रात्रि फेलाई. हिन्दी अनुवाद वहाँ पानी पीकर पेड़ के नीचे बैठी। इतने में सूर्यास्त हो गया और रात हो गयी। गाहा तओ। फेक्कारंति सिवाओ जह जह गुञ्जन्ति सावया विविहं । तह तह भएण हिययं कंपइ मह तत्थ रन्नम्मि ।। २२८।। संस्कृत छाया ततः। फेत्कारयन्ति शिवा यथा यथा गर्जन्ति श्वापदा विविधम् । तथा तथा भयेन हृदयं कम्पते मम तत्राऽरण्ये ।। २२८ ।।
SR No.525092
Book TitleSramana 2015 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSundarshanlal Jain, Ashokkumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2015
Total Pages210
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size15 MB
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